गानों के मालिओों से बातनचीत और ब्सके कद.
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5 गेड्म था। इस लिए हरेक आदमी खान से निवत्ञते ही सीधा पत्सटाइन 'प्र। पहुंचता |
जब मैंमनुष्य के धीरज भर सहनशीलता पर विचार करता
हैं, तब भेरे सामने परमात्मा की महिमा खड्टी हो जाती है। खाना
एक़ने वालों मेंसुद्िया में था। कभी दाल में पानी ध्यादह हो
जाता, तो कभी बह गलती ही नहीं थी |कभी साग कच्ची रहती वो उभी भात बिगड़ जाता। मैंने संसार भें ऐसे बहुत ल्लोग नहीं
देखे जो इंसते-इसते ऐसा भोजन फर लेते है। इसके विपरीत
दक्षिण धफ्रोका की जेल मेंमैंनेयह अनुभव भी प्राप्त करलिया हैकि जरा ही थोड़ा, देर से,या कच्च। खाना मिलने पर अच्छे अच्छे शिक्षित समझे जाने बानों का भी मिजाज बिगड़ जाता था। खाता पकाने के वनित्यत परोसने का काम अधिक कठिन था।
वह तोमेरेअधीन ही रह सकता था। कच्चे पक्के भोजन का हिसाब वो मुझ को ही देना पड़ता। कभो-की आदमी बढ जाते तब
सभावतः सामग्री कम हो जाती। तो ऐसे माँकों पर भोजन थोड़ा थोड़ा धांटकर मुमी को लोगों को सममाना पडता था। कम भोजन मिलने पर बहने मेरी ओर उलहने की नजर से देखने लगतीं,भौर
मेग हेनुसममते ही इंसती हुई चल्न देतीं। वहदृश्य में अपने जीवन भे कभी नहीं भूल सकता मेंकह देता “में तो लाचार हूं।“
मेरेपास पकाया हुआ अन्न तो थोड़ा है,भौर लेने वाले बढ़ गये । इस लिए अत्र मुझेइसी तरद देना चाहिए, जिस से थोड़ा-शोढ़ा
सभी को पहुंच ज्ञाय ” यह सुनते ही वे'संतोषम! कद्द कर रचाना जातीं।
ये तो सब्र हुए मधुर संस्मरण | छुछ कंडवी स्मृतियां भी थीं। शादी जरा भीनिकसमारहा कि ऋगड़ेनवसेडे, भर इससेभी खराब--्यमिचार--के व्योग करने कग जाता दे। ख्री-पुरुषों को