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सब हो जञायगा ।

दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह

समुदाय की कूच दी झन्य तैयारियां भी करती गई |चाह्सटाउत के ढाक्‍्टर सउ्जन पुरुष थे। उन्दोंने ऐसी दवाओं की एफ छोटीसी संदृक मुझे देदी थी, जो रास्ते मेउपयोगी हो सकती

थी। अपने कई शत्त भी देदिये थे जिनसे मेरे जैसा श्रादमीभी

काम लेसके। यह सन्दृक लय हमीं उठाकर लेजाते थे। क्योंकि दल केसाथ कोई सवारी बगेरा तो रखती हो नहीं थी। इससे पाठक जान सकते हूँकि उसमें दवाइया कितनी कम थीं ।_इवनी

भी नहीं थीं कि वेएक साथ सौ आदमियों को काम दे दे। इस

का कारण तो यही था कि प्रति दिन शाम को हमें किसी छोटे गाव के नजदीक अपना पड़ाव डालना पढ़ता था। इसलिए फोई

श्रोपधि समाप्त होते ही फौरन नयी लेक्षी जा सकती थी । दूसरे,

हम अपने साथ मेंएक भी मरीज या पंगुआदमी को नहीं रखते

थे।उसेतो राहमेहीछोड़ चक्षेते जातेये।

खाने के लिए मिचा रोटी और शक्कर के और क्‍या मिल सकता था। पर उस रोटी को भी तो आठ दिल तक हम फैसे रख सकते थे। मिल्ते उसे तो प्रति दिन लोगों को बांटना पड़ता था । इसका उपाय तो केवत्ञ यही हो सकता था कि हर म॑जित् पर हमें फोई रोटियां भज्ञ दिया कर । पर यह करे कौन ? भारतीय बच्ची तो थे दी नहीं। फिर प्रत्येक गाव भे इस तरह के डबल रोटी चनाने वाले भी नहा होते। देद्दात मे शहरों से रोटिया जाती हैं। यदि बबर्ची रोटी बरावर लैयार कर दिया करे और रेल वाले

ठीक समय उसे पहुंचा दिया करें तभी तो यह मित्र सकती थी !'

चाल्सटाइन की श्रपेत्ता वाकसरेरट (टान्सबाल का सरहदी गांव,

जो घाल्सेटाउन से नजदीक था ) एक बड़ा गांव था । वहां वेकर

फी एक बड़ी दूकान थी। उसने प्रसन्नता पूर्वक हमे रोटियोँ पहुँचा