दान्सवाल में प्रवेश |
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नेका कोम अपने जिम्से ले लिया |हमारी कठिनाई को देखकर बातार भाव सेअधिक पेपे लेने कीकोशिश भी उसमे नहीं की । रोटियां थी अच्छे आदे की देता रद्दा |रेलवे पर वह समय पर
रोटी भेज देता और रेह्वाल्ने भी--ये भी तो गोरे ही थे--
प्रामाणिकता पूर्वक हमारे पास पहुंचा देते। इतना ही नहीं
वल्कि इस काम्त मे वे विशेष सतक भी रहते थे। उन्होंने हमारे लिए कितनी ही सुविधायें भी कर दीं | वे जानते थे कि किसी से हमारी दुश्मनी नहीं थी, ओर न किसी को कोई हानि पहुचाने फा
हमारा उद्देश्य था। हमे तो दुःख सहकर भी अपने अन्याय की
पुकार उठाली थी। इसलिए हमारे आसपास का वायुमण्डल भी
इसी तरह शुद्ध होगया और हो रहा
था। मनुष्य-जाति का प्रेम-
भाष प्रगट हुआ। सब ने यही अनुभव किया कि हम सत्र ईसाई,
पारसी, मुसल्मान, हिन्दू, यहूदी इत्यादि भाई-माई हीहैं।
इस तरद क्रूच की तैयारों होते दी मैंने फिर समझौते की कोशिश की। पत्र, तार बगेंग तो भेज दी चुका था। यद्द तो मैं
जानता था कि मेरा अपमान तो ते कर हीगे, पर मैंने यद्दी निश्चय किया कि श्रपमान करें मो तो भत्ते ही करते रहें, मुझे एक बार फमन्से कम टेलज्लीफोन से तो वातचीत कर द्वी लेनी चाहिए।
चाल्मेटाउन और प्रिटोसिया के बीच टेलीफोन था। जनरल स्मद्स को मैंने देक्षेफोन फ़रिया |उनके सेक्रेट्रों सेकद्ा, जनरत्ञ स्मदप्त
सेकहिए फि "कूच करने की तमाम तैयारियां मैंने कर ली हे।
वॉक्सरेस्ट के लोग उत्तेजित द्वोगये है.। संभव है,वेहमारी जान को भी द्वानि पहुचाय |कम-से-कम ऐसा करने की घमकों तो उन्होंने हमें श्रवश्य ही दी है। शायद् यद तो जनरल स्मदस भी
नहीं चाहते होंगे ।यदि वे तीन पोंड का कर उठा लेने का वचन
देसकते होंतो मैंकूच नहीं फरूंगा। महज कानून का भंग करने