पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४४

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हैं,

भारतीयों का आगमन

मिल्तता। यदि चेचारा अधिक माँगता, उसके हिसाव को गलती दिखाता, तो इसके बदले में उसे सीधी-सीवी गालियाँ

सुनती पड़त)। इतने पर ही छूट जाय तो भी गनीमत, नहीं तो गालियों के साथ घूंसा-लात भी खानो पड़ती | इससे मेरा यह अभिप्राय नहीं कि सभी अंग्रेज व्यापारों ऐसे होते हैं। पर यह तो ज़रूर कहा ज्ञा सकता हैकि ऐसे उदाहरण काफी तादाद में मिल्न सकते हैं । इसके विपरीत भारतीय व्यापारी

अपने हृवशी प्राहकों को मीठो जवान से पुकारते हैं,हँसकर

चात करते हैं। हवशी भोते-भाले होते हैं | वे दूकान के अन्दर आकर चीज्ञों कोहाथ लगाते हैंया उत्तम हाथ डाल-

कर देखते हैं तोवेयहसब सह लेते है'। माना कि यह सब वह परमार्थ की दृष्टि से नहीं करता, उसमें उसका स्वार्थ तो रहता ही है, और मौका पाते ही उन्हे वह ठग भी लेता है। पर हवशी लोग भारतीय व्यापारियों को जो पसंद करते हैं, इसका कारण हैंउनकी मीठी वाणी। फिर भारतीय व्यापारियों से हृवशी डरेगा तो कभी नहद्दीं। इसके विपरीत ऐसे उदाहरण

मौजूद हैं जहाँ यदि किसी भारतीय ने किसी हबशो को ठगने का प्रयत्न किया होऔर वह उसके ध्यान में आ गया हो, तो वह व्यापारी उसके हाथों पीटा भी गया है। गालियाँ वह कई बार खाता है। अर्थात्‌ भारतीय और हबशियों के बीच ढरनें-

वाले भारतीय दी द्वोते हैं। खेर, आखिर नतीजा यद्द निकला कि भारतीय व्यापारियों को हबशी ग्राहकों से बड़ा लाथ

हुआ | हवशी तो दक्षिणी अफ्रीका भर में फेल्े हुए थे। भारतीयों नेसुना कि ट्रान्सवाल और फ्री स्टेट में घोअर ज्ञोगों में भीउनका व्यापार फ्रै़् सकता है। बोचर लोग सीधे-सादे, भोले-माले और आउमन्चर-द्वीन दोते हैं। वे भारतीयों