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दह्तिय अफ्रीका का सत्याप्र*
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के ग्राहक बनसे मेंशरमायेगे नहीं। अत कितने दी व्यापारियों
ने ट्रान्सवाल और फ्री स्टेट में कूच किया। वहीँ दुकानें खोल । इस ससय वहों रेल नहीं थी। इसमें वे पृप नफा कमाते थे)
व्यापारियों काखयाल ठोक साधबित हुआ। उन्हें बोधर तथा
हबशी ग्राहक सृध्र मिलने लगे। अब रहा कप कालीनी। वहाँ भी कितने हो भारतीय व्यापारों जा पहुँचे और खत घन कमाने लगे। इस अकार धीरे-धीरे बारों राज्यों मेंभारतीय
जनता फेल गयी। इस समय ख्तन्त्र भारतीयों को संख्या
घालीस पचास हजार और मुक्त और भारतीयों की संख्या लगभग
एक लाख की ऑफी जाती है । यह लिखते समय हस संद्या में
कुछ घटी ही हुई होगी, बढ़ती नहीं।