पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४४३

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श्ध्द्र

वजक्षिण अफीका का र त्योप्रह

हाज्ञत में उसका मुझेयह याद दिल्लाना कि मेंकी हूँ।श्रनावश्यक

हीथा। मैंतोगों से जो दुछु कहदतावद बात सत्ताधारियों के

भी काम की ही थी। पर उन्हें भी तो अपना रूप दिखाना चाहिए

न इसके साथ ही मुझे यह भी कद देना जरुरीहैकि कितने

ही ्रधिकारी इस बात को जानते थे कि कैद इसके लिए कोई

दुखदायी वस्तु नहीं, बल्कि मुक्ति का हार है ।इसलिए वे सब

प्रकार की रिआयते हसारे साथ करते। इतना ही नहीं, वल्कि कैद करना अपनी सुविधा से काम करना, तथा समय बचानों

इत्यादि बातों में वेहमारी सहायता मांगते भौर उसके मिल जाने

पर अपनी एहसानमन्दी तक प्रकट फ़रते। दोनों प्रकार के वदाहरण पाठकों फो इन प्रकरणों मेमिल बावेंगे। मुझे पो यहाँ पहां घुमा कर आखिर देडल्वग के थाने में उतार दिया। रात वहीं हींकटी ०

दल को लेकर पोलक भागे बढ़े,और हेडलवग पहुंचे।वर्ध

भारतीय व्यापारियों का भ्रच्द्धों जमघट था। रास्ते में सेठ आमद

महमद्‌ काकछुत्िया और भामद सायाव मिले। उन्हे इसकी खबर

तंग गई थी कि आगे कया होने वाला है ।दक्ष को भी मेरे ही

साथ साथ गिरफ्तार फरने की व्यवस्था की गई थी। इसलिए

पोलक चाहते येकि एक दिन देर से सह्दी, पर दल को मुकाम पर पहुंच जाने के बाद ढरबन जा कर भारत के जहाज पर चढ़ गा ।

पर परमात्माकीयोजना तो बुध श्रौर दीथी। हक

इन लोगों को गिरफ्तार करके केजाने के लिए देडलबरग मेंदो

टूनेंखड्ठी थीं। लोग जरा ह॒ठ पर चढ़ गये ॥“गांधी को बुलाभो

वे कहेंगे चव हम गिरफ्तार होंगे, और टून मे चैठेंगे ।” यद्द ६ुठ दो खराब ही था। भगर थे इसे न छोड़ते तो वाज्ी यिगड़ने फो भी । सत्याप्रद्दी फातेज घट ज्ञाता। जेल तो जाना ही था। फिर