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दत्तिण अफ्रीका का सत्यामह

विचार था । किन्तु सरकार के विचार तो घड़ी घड़ी पर वदलते रहते थे |भाखिर सरकार इसी नहीजे पर पहुंची कि मि० पोषक

को भारतवर्ष नहीं जाने देना चाहिए। अतः उसने निश्चय किया

कि उन्हें और कैज़्नवेक कोभी, जोकि इस समय खूब काम

कर रहेथे, गिरफ्तार कर त्ञेना चाहिए |इस लिए मि० पोज्क को

घाल्संटाउन मे गिरफ्तार कर लिया |मि० कलनवेक भी पकड़

लिये गये । दोनों बाक्सरेस्ट की जेल मे ढूस दिये गये।

मुझ पर डंडी मे मामज्ा चल्ाया गया । नो महीने की कैद की

सजा मुझेसुनाई गई। अभी वाक्सरेस्ट मे मुक पर मामला चलना

बाकी था। भरत: मुझे वाक्सरेस्ट जे गये। बद्दा मेने मि० पोलक और मि० कैल्नवेक को भी देखा | इस तरदद हम तीनों वाक्सरेस्ट

केजेत् मेंएकन्न होगये। हमें असीम हु हुआ। मु पर जो मामला चलाया गया उसमें भपने खिलाफ मुमको सबूत देना था। पुक्षिस भी सबूत इक्रद्वा कर सकती थी, पर बढ़ी कठिनाई से ।इसलिए

उन्होंने मेरी ही सहायता क्षी !उस देश की अदालतों मे अपने बुनाफी कबूल कर लेने के बाद कैदी को सज़ा नहीं दी जाती। मेरे खिलाफ तो ठीक, पर मि० कैल्ननवेक और मि० पोत्क

के खिलाफ कौन सबूत पेश कर सकता था। यदि सथूत न मिलता

तो उन्हे सजा देना अदालत के लिए असम्भव था। उनके खिलाफ शीघ्रसबूत इकट्ठा करना भी कोई आसान काम नहीं था। मिं० फेल्नवेफ तो अपना अपराध स्वीकार ही करने वाले थे! क्योंकि

उन्हेंसमुदाय फे साथ ही रहना

था। पर मि० पोलक पो भारत-

चर्ष जाना चाहते थे। उन्हें इस बार जेल जाने की बैसी फोई

स्त्मुक्ता नहीं थी। अत्त: हम तौनों ने आखिर यही तय फियार्गक

जप सरि० पोज्ञक को पूद्ठा जाय कि तुमने फलों फ्लॉँ अपराध