पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४४७

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दिए अफ्रीका का सत्यामद

आप जेल छोड कर चत्ते जायें। क्या मैंआपके छूटने के लिए फोशिश करू ९

मैंजेल हरगिज् नहीं छोड्टेंगा। मुझे एक दिन मरना वो हई

है। फिर ऐसा दिन फहाँ, जो मेरी मौत यहीं हो जाय !”

इस ह़ता को मेंकैसे विचलित कर सकता था ! बद् तो

इतनी विकद थी कि विचल्लित करने पर भी ढिग नहीं सकती थी।

दरवतततिंद्द री जो भावना थी, ठीक वही हुआ , उसने जेल हीमे

सॉप दिया। उसका शव वॉक्सरेश्ट अपने को झृत्यु के द्वाथों में से दरबन मगवाया गया था। सम्मान पूर्वक सैकड़ों भारतीयों फी उपत्यिति में दृरबतध्षिद्द काअग्नि-संस्कार किया गया। पर इस

युद्द में ऐसा एक नहीं अनेकों हरवततिद थे। हाँ, जेल में मरने का सौभाग्य जरूर अकेले दरवतसिंद को ही प्राप्त हुआ। शोर इसीलिए दक्तिण अफ्रीका के सत्याम्रह फे इतिहास में उसका नाम

उल्केखनीय भी होगया ।

पर इस तरद्द जेल से आकृष्ट होकर मनुष्यों का आना सर-

फार को फदापि प्रिय नहीं हो सकता था। फिर जेल से

वाले भी तो मेरा सन्देश क्षेकर जाते थे !इसको वह कैसे बरदाश्त कर सकती थी | इसलिए उसने हम तीनों को अलग अलग रखने

फा निश्चय किया। जो हो, बॉक्सरेस्ट से तो एक को भी न खने

दिया जाय । हाँ, और खास कर मुझे तो उसमे ऐसी जगह पर

रखने का निश्चय किया जद्दों एक भी भारतीय नहीं पहुँच पावे। आखिर ओरेंजियाकी राजधानी छूम फनटीन की, जेल मेरे लिए घुनी गई । आरेजिया के देश भर मेसब मिल कर ४० से अ्रधिक आसतीय नहीं होंगे। और वेसभी होटलों मे नौकर। ऐसे प्रदेश

फी जेल मे भारतीय फैदी मिल नहीं सकता थो। जेल भर में मारतीय के नाम से अकेला में हीथा। शेष सबगोरे या दबसी