पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४४८

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सभी फेदी (७३ ये।इसका मुझेकोई हुःख नहीं था। इसे तो मैंनेसुख माना। वहाँ न तेमेरेलिए हु देखने को था भौर न सुनने के लिए ।यह भीएक परसल्ता की धात थी कि यहाँ मुझेखूब सघीन अनुभव

मैज्ञा। फिर अध्ययन के लिए प्ो मुझे बरसों से,अर्थात्‌ १४६६३

रैवाइसेअवसर ही नहीं मिला था। इसलिए यह सोच कर

रेसहुए ही हुआ कि अथ मुझे अ्रध्ययन के लिए पूरा एक साञ् मेक शायगा |

मैंच्छूमफनदीन पहुँचा। एक्ानत तो खूब मिला | अमनुविधाये

बहुत सीथींपर वेअसाधारण नहीं थीं, सब सहने योग्य थीं।

मेक वर्णन करके पाठकों कासमय नहीं छूगा। हाँ, इतना कह

नि भावश्यक हैकि वहाँ के डाक्टर मेरे मित्र बन गये। जेलर

जीकेवलअपने अधिकारों का ही स्थाल रखता था ।भौर डॉक्टर 'दियों के अधिकारों की रक्षा करता था। इन दिनों मैंकेवल शहर करता था। न दूध लेता थान घी] अनाज तो बन्द

था मैं केले, टामाठा, कथी मुंफत्षी, मीम्यू, और मेतून का जैआत्र खाता था। इनमे से एक भी वस्तु यदि सडी मिलती

! भूमलों मरना पड़ता | इसलिए डॉक्टर साहव विशेष सावधान

इते ।उन्होंने मेरे भोजन में अखरोट बादाम और ऑमिहनट । शामिल कर दिया। वे खवय्य॑ सब पक्षों को जांच लिया करते मेरा कमरा बढ़ा तंग था। हवा बहुत कम मिलती थी।

नेख़ब कोशिश की कि उसका दरवाजा खुला खा रहे ।

९ उसकी एक भी न चत्ली। जेत़र ने तो कह्दा कि यदि फहीं

आजा खुल्ना'हुआ देखलूंगा तो में अपना इस्तोफा ही पेश कर ॥। वैसेजेलर कोई खराब आदमी नहीं था, पर उसका ख़माष भानों एक सांचे का ढला हुआ था। भला वह उसे केसे बदल

शत था | उसे हमेशा ठो बदमाश कैदियों सेकाम पढ़ता रहता।