पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४५३

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श्ष्द

अफ्रीकाकासत्याग्रह

खानों के मजदूरों कीसहायता सेहीलड़ाई समाप्त करदंगे।यदि सभी अर्थात्‌ ६०,००० मजदूर हड़ताल कर देते तो उनकी पोषण”

करते करते मुश्किल होजाती |इन सत्र की कृच कराने इतनों सामा्री भो हमारे पास नहीं थी । न इतनेमुखिया थे ओर न उतना

पेसा । फिर इतने आदमियों के इकट्ठ होने पर उपद्गव न द्षेनेदेना भी तो महा कठिन काम था न

किन्तु भला वाद भी किसो से रुक सकती है! सत्र जगद्ट से अपने आप मजदूर निकत्त पड़े, स्मयं सेवक भी अपले आप:

चुन लिये गये, और काम शुरू कर दिया गया टः अब सरकार ने वन्दुऋ-नीति का आश्रय ज्िया। लोर्गा को हड़ताल करने सेजबरदरती रोका गया। उन पर घोड़ेदौड्ा कर उन्‍हें वापिस भेजा गया | जरा भी लोग कहीं उपद्रत मचाते तो उन पर

गोलियाँ चत्त जातीं। पर कोगोंनेछ्ौट जाने सेउनक्ार कर दिया। क्रिस किसी ने पत्थर भी फेंके, फेर किये गये। कई

घायल द्ोगये |दो चार मरे। पर लोगों का उत्माह नहीं घटा। स्रयंसेदर्कों नेयहा के लोगो को हडताल करते फरते रोका। सत्र तो काम पर नहीं गये ।कितने ही मारे हर के कहीं छिप गए,

और फिर लौट कर भो नहीं गये । पुर भंग रहते खनोय है। वेरलम मे कई मजदूर निकल पढ़े थे ।वे किसी प्रकार ज्ौटकर जाना नहीं चाहते थे । जनरल ल्यूकिन अपने सिपादियों को लेकर वहाँ खडा था। लोगों पर गोली चलाने का हुक्म वह देने को ही था, कि खर्गीय पारसी" रस्तमजी का छोटा ल्ब्का बहादुर सोराबजी-जिसकी उम्र उस

समय शायद ही अठारद धरे की होगी-डरवन सेयहाँ आ पहुँचा ।-

चरनल के घोड़े की लगाम थाम कर उसने फद्दा “आप गोलियाँदे का हुक्म नदें, मैंअपने ज्ञोगों को शातिपूर्क अपने अपने,