पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४६०

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“ अन्त का प्रारम्भ )

श्प््‌

कर

कि जब तक उनशर्तों का पालत-न किया जायेगा, तत्र तक वह उसका बहिष्कार करेगी |उनसे नीचे लिखी दो शर्तें थीं। (१) सब सत्याप्द्दियों कोछोड़ दिया जाय | (२) कमिशनमेंकम्र सेकम एक सभ्य तो जरूर भार«

चीयों का चुना हुआ हो ।

पदल्ती शत को कुछ अंशों में स्वयं कमिशन ने ही मान लिया

था, और उससे सरकार से सिफारिश की थी कि कमिशन का

काम सरत्ञ करने के लिए सरकार मि० क्ेजननवेक, सि० पोज्ञक और मुझे बिना किसी शर्तें करे छोड़ दे। सरकार ने इस सिफा-

रिश को मंजूर कर दम तीनों को एक साथ छोड़ दिया। मुश्किल

से इमदो महीने जेल मेंरहे होगे।

इधर वेस्ट को भिरफ्तार तो कर लिया पर सरकार के पास

ऐसा कोई सवृत्त नहीं था जिसके वत् पर उन पर वह काम चला

सकती | इसलिए उन्हें भी उसे छोड़ना पड़ा। येघटनाये ऐंण्ड्यूज और पियसन के दक्षिण अफ्रिका पहुंचने के पहले ही घट चुकी थीं।इसलिए दोनों मित्रों को स्टरीमर से मैं हीलिया लाया।

दोनों को इस बात के कोई समाचार नहीं मिलते थे, इसलिए उन्हें

पड़ा ही आश्चर्य पर साथ दी आनन्द भी हुआ। दोनों के साथ मेरा यह प्रथम परिचय ह्ीथा।

'

छूटने पर हम तीनों कोनिराशा द्वी हुईं। बाहर के कोई

दात्र हमे माक्म नहीं थें। कमिशन की खबर सुनकर हसें आश्चर्य

सो ज़रूर हुआ, पर हमने देखा कि हम कमिशन की किसी प्रकार

| पद्दायता नहीं कर सकते थे। हसने इस वाद को भी महसूस किया कि कमिशन में भारतीयों कीतरफ का भी कोई आदमी दोना

जरूरी है। इस पर हम तीनों उरव॒न पहुंचे ओर वहां सेजनरत्न

प्ाटस को एक पत्र किया जिसका सार इस तरद थाः--