पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४७

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ददिण अफ्रीका मा एनिट

कह

बहदोंपैदान दोवी थीं। जद्दों की ये चोजे फचित प्रसंग मिछ्तती भी थी, वहाँ अब फाफी ठादाद में और अच्छी मिलन

लग गयों । इससे साग-तरफारी के भाव एकदम गिर गये। पर घनिक गोरों को यह बात भ्रच्धी न मालूम हुई। उख्ोने सोचा कि आज तक जिम बात का ठोका हमारे पास था अप इसमे नये हिस्सेदार पैदाहो रहेहैं। अतः इस बेचारे गिग्मिटियों के खिलाफ वहाँ एक हलचल खड़ी हो गयी । पाठकों की आशय

होगा कि एक ओर तो वे अ्धिकाधिक मजदूर मोँगत जा रहे

ये-भारत से मितने मजदूर श्रते, वे एक दम बेँट जाते । और

जो गिरमिद से भुक्त होते जात थे उनपर अनेऊ प्रकार के अंकुश रखने के लिए भ्रान्दोज्नन हो रहे थे। चद्द था बेचारे गिरमिटियों की होशियारी और कड्ी मेहनत का बदला !

आन्दोलन ने कई रूप धारण किये। पक पत्त का यह कहना

था कि गिरमिठ-भुक्त भारतीयों को भारत लौटा दिया जाय और

नये सजदूर-गिरमिटिये चुज्ञाये जाये और उनसे यह इकरार करा

लिया जाय कि मिरम्िट को मोयाद खतम होने पर वेया वो फिर भारत लौट जायें या वहीं पर अपनेको फिर गिरमिट में चाँध

लें। दूसरा पक्ष कहता कि यदि थे गिरमिट मुक्त होने के बाद फिर से अपनेको गिरमिट में ल बाँध के तो उनसे भारी

वार्षिक सतुष्य-कर क्षिया जाय । पर इन दोसो पत्तों

दो यही था किकिसी भी सूरत से मिरमिटिये कानेटालउनमें कमी स्वतन्त्रतापृतक न रहसकें। आख़िर यहाँतक फोलाइल

मचा कि लेटाज्ञकीसरकार को एक फेमीशन नियुक् करना पड़ा। दोनों पत्तोक ं ा अन्याय-मुज्ञक थीं और गिरमतिटिय ों को स्वाधीनता आर्थिर रष्टि से चहाँढी सारी जनता के लिए लाभदायक ही थी। अतः कमीशन के पास लो सबूत इकट्ठा हुआ