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पिछली मुसीबतों पर एक नजर
चह इन दोतों पत्तों केखिल्लांफ था। फलवः तात्कालिक परिणाम
तो विरुद्ध पक्ष की दृष्टि से कुछ भी न निकला । पर अग्नि प्रशान्त
दोने पर भी अपनी कुछ न कुछ निशानी तो छोड़ ही जाती है। उसी प्रकार उस आन्दोल्लन नेभी नेटाल सरकार पर कुछ
न कुछ असर जरूर ढाला; और यह स्वाभाविक भी था । नेटाज्ञ की सरकार धनिक-वर्ग की दिमायत थी। भारत-सरकार के साथ
पत्र-व्यवद्दार शुरू हुआ, और दोनों पत्नों की सूचनायें वहाँ
पहुँचीं। पर भारत-सरकार भी सहसा ऐसी सूचनाओं को केसे कबूल कर सकती थी, जिनके कारण गिरमिटियों को आजन्म शुल्लामो मेंरहना पढ़े ?भारतीयों को गिरमिट में बाँधकर इतनी दूर,भेजने का एक कारण या बहाना यह था कि वे गिरमिट की
मीयाद खतम होने पर स्व॒तन्त्र होकर अपनी शक्तियों को बढ़ा
कर अपनी आर्थिक दशा सुधार लें। इस समय नेटाल “क्राउन कालोनी था। अतः काज्ञोनियल आफिस "क्राउन कालोनी” के कार्यो के ज्िए जिम्मेवर माना जाता था, जिससे नेटाल को
अपनी अन्यायपूर्ण इच्छा पूरी करने में उससे कोई सहायता
नहीं मित्न सकती थी। इस तथा ऐसे ही अन्य कारणों को लेकर
अब'नेटाल्ष मेंउत्तरदायित्व-पू्ण शासन-व्यवस्था को स्थापना के 'क्षिए आन्दोलन खड़ा हुआ |और उसे यह सत्ता १८६३-६४ में प्राप्त मीहोगयी |अब उसे जोर आया | फिर काज्नोनियल आफिस
को भी नेटाज्ञ को मनमानी साँगें स्वीक्षार करने मेंकोई कठिनाई जअहीं मालूम होती थी। नेटाल की इस नवीन सरकार, इस उत्तर-
दायित्वपूण शासन-हवारा भारत-सरकार के पास उस विषय पर
बातचीत करने के लिए राजदूत भेजे गये। उन्होंन यह चाहा
कि अत्येक मुक्त भारतीय पर २४ पौण्ड अर्थात् ३७४) वार्षिक
कर रखा जाये ।इसका तो यही मतलब था कि न कोई भारतीय