श्ध्द
दक्षिण अक्रिका का सत्यामह
दिला विश्वास करने चलते १ अनेक ने १८०८के सममीते की याद
के साथ दिल्ला कर कद्दा “जो जनरल स्मट्स पहले एक वार कौम चर्च शामिल
विश्वासघात कर चुकेहैं,जो सत्याप्रद्द भे नवीन करने का आरोप आप पर महू चुके हैं,मिन्द्ोंने कौम पर विपित्ति के मद्दान् महान पर्वत ढह्देहैं,क्या आप उन्हें फिर भी झभी तक
नहीं समम सके | कैसे दु,ख की बाव है? यह आदमी फिर आप
के साथ विश्वासघात करेगा और फिर आप सत्याम्द को रा
आंलाएँगे किन्तु तब आप पर कौन विश्वास करेगा ! यह कैसे हो
सेकता है.कि लोग वार वार जेल जाबे, और फिर बार वार घोखा खाबें १जनरत् त्मदस जैसे आदमी के साथ तो केवल एक ही , समभौता होसकता है।और वह यही की हम जो कुछ भी चाहते दृवह देदे ।उससे बचन न लिये बाय। नो बचन दे कर फिर
उन्हेंवोढ़ देता है.उसे उधार भी कोई कैंसे देगा” ? मैं जानता
था कि इसी प्रकार की दल्लीलें कई जगह पेश की जाबेंगी। इस
लिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। सत्याप्रह्दी केसाथ चाहे कितनी ही बार विश्वासघात किया जाये वह तव तक बरावर वचनों
पर विश्वास करता जायगा जब तक कि उसे इसके विपरीत कोई ऐसे ही घल्वान कारण नहीं मिल जावेंगे। जिसने दुख की ही सुत्न समम लिया है, वह केवल दुःख के भय से ऐसी नगद
अविश्वास न करेगा, जहां अविश्वास फरने के लिए कोई फारण न हो। बल्कि वह तो अपनी शक्ति पर विश्वास रखकर इस घात को चिंता ही न करे कि कहीं विरोधी पक्ष फिर विश्वातघात न
कर जाय । वह्द तो वचनों पर वराबर विश्वास करता हुआ भांग
बढ़ता जायेगा, चाहे कितनी ही बार उसके सांध विश्वाप्रघात क्यों न हो; और यद करते हुए वह यद्वी ख्याल खखेगा कि इसी परह
उंत्य का बल बदृवा जायगा और विजय नज़दीक आवेगी। इस