युद्ध का अन्त
२०३
घ्तों कासामना करना पड़ा | सरकार को भी इसके कारण बड़ी चिता मे पडना पडा |प्रधान मंत्री महाशय जानते हैंकि मेरे कितने ही भाई इससे कह्दीं अधिक बाते मांग रहे थे। भिन्नभिन्न प्रास्तों मे व्यापार करने के परवानों केविपय मेंकानून, मसलन
टूान्सबाल का “गोल्ड लॉ”, 'दृन्सचाल् टाउन शिप्स एक्ट' तथा सन् १८८५ का ट्न्सवाल का नं० ३ का कानून,--वरगरा में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया गया जिसके कारण रहने बगैरा विपय के सम्पूर्ण दक, व्यापारी स्वतन्त्रता, और ज़मीन की मालिकी
का हक भी हमे मिल जावे, इसलिए वे असंतुष्ट दो गये हैं। कितने ही तो इसी वात पर असँतुष्ट हो गये है कि उन्हें एक प्रांत से दूसरे प्रात मेंआने की पूरी स्वाधीनता नहीं मिली है। कई इस* साथ रि्आयते करने वाले विवाह लिए नाराज़ हैं. किभारतीयों के
विषयक कानून मेंविवाह केविषय से जो कुछ किया गया द्टे
इससे हुछ अधिक करने को जरूरत थी। और वेसब चाहते थे
कि मेंइन बातों को सत्याप्रह के उद्दशके अन्दर शामिल करू
पर मैंने उनकी बातों को मंजूर नहीं किया | इसलिए यद्यपि सत्याप्रह के उद्देशों मेइन बातों को सम्मिलित नहीं किया गया है, तथापि इस बात से तो कदापि इन्कार नहीं किया जासकता कि किसी दिन सरफार को इन बातों पर भी विचार करके उनको न्याय देना चादिए। जब तक यहां बसने वाले भारतीयों को नागरिकत्व के सम्पूर्ण इक नहीं दिये जावेंगे; तव तक पूरेसंतोष की आशा ही नहीं कीजासकती। अपने भाइयों को मैंने कह
दिया है कि आपको शांति रखनी चाहिए | और प्रत्येक उचित
साधन के द्वारा लोकमत को इतना जागृत कर देना चाहिए कि भविष्य फी सरकार उन बातों से भी आगे बढ़ जाय जिनका कि इस पत्र-व्यवद्दार मे उल्हेख किया गया है। भुझे भआाशा है