दहिण अफ्रीका का सत्याग्रह
कर
सज़दूर इतना भारी कर देसके और न वह कभी नेदाल में
सतन््त्र हो पावे। उस समय ला हार्बिक्ष भारत के बढ़े हाट
थे। उन्हेयद्द कर बहुत भारी मालूम हुआ | आखिर ंई
कुवूल एशिया कि मुक्त सारतीय ३ पोढ वार्षिक मनुष्य-कर कर यह मलुष्प-कर न फेवल मजदूर को ही वल्कि उसकीत्त्नी
बारह सा की उम्रवात्षी छ़ड़की और सोलह वर्ष से अधिक उम्रदाले क्डके को भी देना पड़ता था। शायद हो कोई ऐसा मजदूर होगा जिसके एक स्री और दो तड़के न हो। अतः आम
तौर पर मजदूर पर प्रति वर्ष १९ पौड केवल वार्षिक करदेने
का आर पढ़ता था। इस वात का पूरा-पूरा वर्णन नहीं हो सकता कि यह कर कितना कष्टदायो साबित हुआ । केवल अतु-
भवी जन ही इस दुःख को जानते हैं, अथवा इब'डुद्च वह भी समम सक्तता हैजिसने इन पीड़ितों को स्रय देखा हो। नेटाल सरकार के इस कार्य के खिल्लाफ भारतीय जनता ने खूब आन्दोलगन मचाया था। बड़ी (ब्रदिश) सरकार और भारत सरकार को अरजियाँ भेजी गयीं। पर इसका परिणाम पचीस के तीन पौंढ होने के अतिरिक्त कुछ भी न निकल्ञा | स्वय गिरमिटिये तो इस
विषय मेंकर ही क्या सकते थे ? वे जानते भी क्या ये ? आंवोलन तो केबल व्यापारीषग ने देशभक्ति की दृष्टि सेकहिएं श्रथवा परमार्थ की दृष्टि से कहिए, चलाया था। जोदवाजगिरमिवियों का हुआ वह्दो स्वतन्त्र भारतीयों का
लेकर एक आन्दोलन शुरू किया! भारतीय व्यापारी अच्छे जम गये थे । उन्होंने अच्छी-अच्छी जगहों पर जमीनें खरीद ली थीं। ज्योंज्यों मुक्त भारतीयों की बस्ती बढ़ती
गयी, त्यों-त्यो उनकी आवश्यक वस्तुओं की विक्रो भी बढ़ने क्षगी ।