पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/५०

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पिछली सुसीबतों पर एक नजर

भारत से चावल के हजारो बोरे आने ज्ञगें और उनमें खूब नफा मिलने लगा । यह व्यापार खास कर स्वाभाविकरूप से भारतीय

व्यापारियों के हो हाथों मे था। हबशियों में भीउनका व्यापार चल निकला | यह बात छोटे गोरे व्यापारियों से नही देखी गयी। फिर इन भारतीय व्यापारियों को किसी अंग्रज ने यह भी कह दिया कि उन्हेंभो कानून के अनुसार नेदाल की घारासभा के

सदस्य दोने कातथा अपनी ओर से सदस्य चुनने का अधिकार है। कितने द्वीनाम मतदाताओं में लिखे गये-। नेटाल के राजनैतिक गोरे इस बात को नहीं सह सके, क्योंकि गोरों को यह एक

भारी चिन्ता हो गयी कि यदि इस तरदद नेटाल में भारतीयों के

पैर जम गये, उनकी प्रतिष्ठा बढ़ गयी तो उनकी प्रतिस्पर्धा में हम

केसे टिक सकेंगे !अतः उस उत्तरदायी सरकार के लिए सबसे आवश्यक बात यह हो गयी कि वह एक ऐसा कानून बनावे जिमसे झत्र आगे एक भी नवीन भारतीय मतदाता न बढ़ने पाबे । १८६४ इ० से इस विषय का पहिला बिल नेटाल की धारासभा में उपस्थित किया गया । इस विज्ञ कायह आशय था कि भारतीयों को महज इसलिए अपना मत देने से रोके

जाये कि वे भारतोय हैं। नेटाल में रगभेद के आधार पर भारतीयों के विषय में बचाया गया यह पहला ही कानून था। भारतीय

जनता चौंकी |उसने इसका विरोध किया। एक शत के अन्दर

एक द्रख्वास्त बनायी गयो और चार सौ भारतीयों के हस्ताक्षर उसपर हुए। यह दरख्वास्त पहुँचते ही घारमभा के कान खड़े हुए। पर कानून पास हो ही गया। उस समय लाड रिपन इन राज्यों के प्रधान सचिव थ। उससे दरख्वास्त कीगयी। उसपर दस दजार सारतीयों--ल्गभग नेंटाल की सारी स्वतन्त्र भारतीय जनता--के हस्ताक्षर थे। लाड रिपन ने बिल नामजूर किया