पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/५६

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पिछली मुसीबतों परएक नजर

को अपना शिकार, और उन्हे आत्मांहीन मानते हैं।” इत चार वाक्यो मेंचार भारी-भारी करू बातें हैं।यों तोऔर भी /उनकी झूठ के कितने ही नमूने पेश, किये जा सकते हैं.। जेसी जनता चैसे ही उसके प्रतिनिधि। हमारे व्यापारियो को इस वात का

कैसे ख्याल हो सकता हैकि उनके खिलाफ ऐसे-ऐसे बेहूदे तथा: अन्याय-मरे आन्दोलन किये जा रहे हैं? वे तो समाचार-पत्र

भी नहीं पढ़ते थे । समाचास्-पत्रों तथा द्रख्वास्तों के द्वारा चल्ायो गयी इस हलचल्न का प्रभाव धारासभा पर भी अवश्य ही

पढ़ा और उसमें-एक बिल पेश किया गया। ये खबर भारतीय

मेताओ के पास पहुँची और वे चौंके। वे प्रेसीढेन्ट ढेन्ट'ऋगर

के पास गये। खगीय प्रेसीडेन्ट साहब ने तो उन्हे अपने घर में

भी पैर नही रखने दिया । घर के वाहर ही उन्हे खड़े करके उनको

बाते छुछ सुनी-अनसुनी करके कहाः--आप तो इस्माइल् की

औलाद हैं। अतः आप ईसा की औल्ाद की गुज्ञामी करने ही के

क्षिए पंदा हुए हैं। हम ईसा की ओऔलाद हैं। हमारी बराबरी में

आपको कैसे हक मिल सकते हैं. ? हम जो कुछ दें उसी मे आपको संतोष मानकर रहना चाहिए ।” हम नहीं कह सकते कि

इसमें जरा भी द्वेष या रोष था। शेसीढेन्ट साहब को शिक्षा ही

ऐसी मिलो थी ।बचपन ही से बाईबिल 'के पुराने इकरार में बतायी बातें उन्हे पढ़ायी गयी थी। और उनमें उन्कका विश्वास

होगया था ।और यदि कोई मनुष्य जिस बात को वह मानता

हो उसे वैसा ही शुद्ध हृदय से स्पष्ट शब्दों में कद्दे तोइसमें उसका कौन दोष है? पर फिर भी इस निर्दोष अज्ञान का भी खराब

असर वो दोता ही है। नतीजा यह हुआ कि १८८३ इसवी में-

एक बढ़ा ही सख्त कानून जल्दी-जल्दी मेंमंजूर कर लिया गया ।

मानो दजारों भारतीय ट्रान्सवाज्ञकोंलहने ही' के लिए- तैयार