पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/६१

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दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह कद तथापि उनकी ग्रेम-घारा भारतीयों कीओर भी अवश्य बहती । उनकी दल्लीज्ञ यह थी कि हबशी लोग गोरों के पहले से यहाँ रह

हेहैंऔर उनको यह माठ्भूमि है।इसलिए उन्तका स्वाभाविक

प्रधिकार गोरों सेनहींछीनाजासकता। किन्तु प्रतिस्पधोंके

पय से बचने के लिए यदि मारतीयों के खिलाफ कुछ काून

व्रनाये जायें तो चह विल्कुल्न अन्यायपूर्ण नहीं कहा ज्ञा सकता।

पर इतने पर भी उनका हृदय हो हमेशा भारतीयों की और ही

सुंफता । स्वर्गीय गोपाल कृष्ण गोखले जब दृक्तिण अफ्रीका पघारे थेत्व उसके सम्मान मे केपटाउन हात़् में जो सभा चुल्ञायी गयी थी उसके अध्यक्ष श्री श्राईनर ही थे। श्री मेरीमैन

ने भी उनसे बढ़े प्रेम और विनयपृर्थंक बातचीत की और

भारतीयों के प्रति अपना प्रेम-भाव दर्शाया। कैपटाउन के संम्राचार पत्रों मेंभी पक्षपात की मात्रा इधर-उघर समाचार-पत्रों की अपेक्षा सदा कम रहती |

श्री मैरोमैन के विषय मेंमैंजो कुछ लिख गया बह दूसरे

गोरों के विषय में सी कह जा सकता है । यहाँ वो बढौर

उदाहरण के उपयुक्त सर्वमान्य नामों का उल्लेख किया है। ऊपर वताये कारणों से केप कालौतो मेंरंगहवहमेशा बहुत कम परिमार मेंरहता । किन्तुयह छैसे होसकता हैकि जो वायु दक्तिण

अफ्रीका के उन दीतों राज्यों मेंचहती उसका असर केप कालोनी

मेंविल्कुज्ञ दी न पहुँचता ? इसलिए नेटात ही की तरह वहाँ भी भारतीयों केप्रवेश और व्यापार को रोकने के लाइसेंस (परवान) देनेके कानून गढ़गये। श्र्थात्‌ यह कट्दा जा सकता हैकि अवतक

जोदक्षिण अफ्रीका का दरवाजा भारतीयों के लिए खुला था

सो बोअस्युद्ध के समय तक कतीव-करो्र विल्कुज्ञ वन्‍्द हो गया। ट्रान्सबाल्ष में उन तोन पौर्ों के अतिरिक्त कोई ,सुकावट