घ६
भारतीयों नेदया किया !
के अलावा अधिक कया सेवा कर सकते है !फिर गिरमरिटिया
और मुक्त भारतीय प्रधानतः थुक्तप्रात्त और मद्रास से आये
हुए लोग थे । खतन्त्र भारतीय थे मुसलमान और उसमे भी अधिकांश व्यापारी और जो हिन्दूथे,पेगुमाश्ता ज्ञोग थे--यह् हम पिछले अध्णयों मेंदेख ही चुके हैं। इसके अतिरिक्त कुछ पारसी व्यापारो और गुमाश्ते भीथे। पर सारे दक्षिण अफ्रीका अर मेंपारसियों को बस्ती ३०-४० से अधिक न दोगी। स्व॒तन्त्र व्यापारियों मेंएफ चौथा विभाग भी था। इनमे सिंध से आये हुए व्यापारी थे। भारत के बाहर वे जहाँ-जहाँ गये हैं वहाँ-बहाँ थे एक ही प्रकार का व्यापार करते है। चहाँ वे “फेन्सी गुद़स”
के व्यापारी के नाम से जाने जाते हैं। “ फेन्सी गुड्स” से मतलब हैरेशम-जरी आदि का सामान, बम्बई के शीशम, चन्दन,
हाथी-दाँव आदि का वना नक्क्राशीदार सन्दृक तथा अनेक प्रकार
की शोभा की चीजें। उनके ग्राहक अक्सर गोरे ही होते हैं। गिरमिटियों को गोरे अक्सर छुज्नी ही कहते हैं । कुत्ती यानी मजदूर | यह नाम वहाँपर इतना चल निक्त्ञा कि स्वर्य गिरमिटिये अपने को कुल्ली कहते हुए नहीं शरमाते थे। बाद मेंयह
नाम तमाम भारतीयों तक को वे लगाने जग गये। अर्थात् भार-
तीय व्यापारी और भारतीय वकील को गोरे क्रमशः 'कुज्षी व्यापारी” और 'कुछली वकोल' द्वीकहते। कितने हो गोरों को यह स्याक्ल
तक नहीं होता कि इस तरह पुकारने में कोई बुराई है। बल्कि किनते द्वीतो तिरस्कार प्रदर्शित करने के लिए इन शब्दों का
प्रयोग करते | फ्न यह होता हैकि स्वतत्र भारतीय अपने को गिरमिटियों से मिन्न जताने का यत्न करते। इस कारण से
तथा जिन कारणों को हम ख्यं भारत ही से ले जाते हैंउनसे
“रतंत्र भारतीय और गिरमिदिया तथा गिरमिट-मुक्त भारतीयों के