पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/६५

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इंघिण अम्रैफा फा सत्पाग््‌ बीच दिन घ पिन सेठ बढ रहा था।

राई '

दुख के इस महासागर फो बढते हुए रोकने का दाम पहुओे

पहल खतत्र भारतीयों ने और खास कर मुमलमान व्यापारियों ने शुरू किया । गिरमिटिया और मिरमिट्-मुक्त भारतोय इसमे शामिल नहीं फिये गये । न उन्हें (सजा ख्याक्ष ही रहा होगा

अगर सूमा भी द्वोना तो उनको शामिक्ष कर लेने से फाम सुधरने की अपेत्ता विगडने का ही अधिक ढर था । दूमरे, लोगों नेसोचा कि मुख्य आपत्ति तो छ्तन्न व्यापारी वर्ग पर ही है। इसीलिये रकात्मक आन्दोलन नेइतना संकुचित रूप धारण किया था। इतनी कठिनाइयों के होते हुए, अग्रेजीभाषा के ज्ञान का अभाव होते

हुए और सावेजनिक आन्दोलनों का भारत मेंअतुभत्र न होते हुए

भी यह कटा जा सकता हैकि स्ततन्न बगे अपनी मुसोचतों सेखुह मंगढ़ा । उन्होंने गोरे वकोज़ों को सहायता की, दरस्व्रास्तें पेश

कीं, समय-समय पर शिष्ट-मए्ढत्ञ भी भेजे, भर जहाँ-जहाँ हो सका बक्षप्रयोग भी किया। १८६३ है० तक यह हालत थी।

इस पुस्तक का आशय ठोक-ठोक समझने फे लिये पाठकां को जुछ-इुछ तारीखें याद रखनी होंगी। पुरतक के अन्त मेंमुख्य घटनाओं का तारीखवार परिशिष्ट दिया गया है। अगर पाठक

उसे बार-बार देख लिया करेंगे दो उन्‍हें आन्दोज़्न का रहस्य रूप सममभते में सहायता होगी। १६६३३० तक वहाँ की परिस्थिति इस प्रकार थी । प्रीलसटेट से हमारे थोरिये विस्तर बेंध

चुके थे। ट्रान्सवाल में १८५४ का कानून शुरू था। नेटाल मेंयह विचार घत्त रहा था कि किस प्रकार केवल गिरमिटियों को रखकर दूसरेभारतीयों को नेटाज्ञ से बाहर निकात्षा जाय। भौर इसी

लिए उत्तरदायित्वपूर्ण शासन व्यवस्था भी उसने ले रकखरी थी।

अग्नेज् १८६३ ई० में में भारत से दक्तिण शपफ्रोका जाने के: