दक्षिण अफ्रीका का तत्याग्रा!
श्र
रोव के साथ में जहाज से उतरा । पर इससे हो मेरी भर
चुल्् गई। दादा अवदुल्या के जिन सामोदार फें साथ मेरी बात"
चीत हुईथी, उन्होंने यहाँ का जो वर्णन सुनाया या, वह हो मुर्े
सब उल्टा ही उक्ञटा दिखाई दिया पर यह उनऊा दोप॑ ने था। उनका भोलापन ध्रक्षता श्रौर परिस्थिति का अत्तान था!
उन सब मुस्तोवर्तों काखयाल न था, जो नेटाक्ष मेंभारतीयों पर
पढ़ती हैं। साथ ही भारो अ्रपमाव भरो घातें उनके दिल को अ्रप-
सानजनक न भालूम हुई। मैंने तो पढ़िते हो दिन देख लिया कि वहाँ पर गोरे ज्ञोग हमारे साथ बढ़ी बुरी तरह पेश भत्ते हैं। नेदाल मेंउतरने पर पंद्रह दिन तक मुझ पर जो जो मुसी-
बरतेंपड़ीं--अदाक्षतों में जो कहुधा अनुभव हुप्रा, रेलों में जो तकलीफ उठाई, रास्तों पर भो पिटाई हुई,होटलों में जो अप्ुतिः घाये सह्दी, जगभग निकाल! गया, इत सच का वर्णन मैंनहीं कर
सकता | पर इतना जरूर कहूँगा कि येतमाम अल्गुभव भरे रगो-
रेशे मे पेठ गये। मैंकेबल एक हो मामले के लिए गया था।
और सो भी स्वार्थ और इतूहल् की दृष्टि से।अर्थात् इस वर्ष तो
मेंइन दुःखों का केवत साक्ती और अनुभवी मात्र रह सका। पर मेरे धर्म ने उसी समय से भेरी ऑँखें खोल दीं । मैंने देखा कि
थे की दृष्टि से दक्षिण अप्रोका मेरे जिए एक बेकार देश है।
जहाँअपमान होरहा हो, पह्ों घन फसाने अथवा सफर करने का
ओ जोस मुझे तिलन-सात्र नथा। इतना ही नहीं, बल्कि चहाँ
दहरना भी मुझे तोअसह्य मातम हो रहा था। मेरे सामने एक
बमसकढ आकर उपस्थित हुआ । एक तरफ दिल्ल यह कहता
कि जिस स्थिति फा मुझेरुयाल तक ने था, वह यहाँ खड़ी है,यद्द
ऊदेफर दादा अवदुल्ला के इकरार से मुक्ति श्राप्त करखदेश को भाग जाहँ और, दूसरे ओर बह यह कह रहा था कि तमाम