पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/६८

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भारतीयों ने क्या किया १

मुसीवतों कासामना करके अंगीकृत कार्य को पूरा कहं। भीषण

जाड़ापड़रहा था। मेरित्सवर्ग के स्टेशन पर पुलिस के धक्के खाकर आगे जाना मुल्तवो करके मेवेटिंग रूस मेंबेठा था। यह खबर भी न थीकि असंबाब कंहों पड़ा है, न किसी से पूछने फी कुछहिम्मत द्योती थो। डर यह था कि कही ऐसा ही

प्रपमान और न हो जाय-पिठना न ॒पढ़े। इस हात्नतत में में

गरे जाड़े के कांप रहा था । नींद कहाँसेनसीब हो सकती है९

प्रा्निर चित्त जरा स्थिर हुआ । बढ़ी रात को मेंइस निश्चय रर पहुँचा कि अंगरीकृत काये कोअवश्य पूरा करना चाहिए। अयक्तिगत अपमान सहन करके यदि पिटना पड़े तो पिट कर

परी प्रिटोरिया जरूर पहुँचना चाहिए । प्रिटोरिया मेरे लिए केन्द्रस्थान था। मामल्ला वहीं चलता था। अपना काम करते हुए अगर कुछ हो सके तो जरूर करना चाहिए। यह निश्चय करने पर मुमे कुछ ऊुछ शांति प्राप्त हुई | हृदय मेंकुछ उत्साह भो आया | पर नींद तो जरा भी न आई |

दिन निकक्षते ही फौरन्‌ मैंने एक तार तो दादा अब्दुल्ला की

दूकान को और दूसरा रेलवे केजनरत्न मैनेजर को दिया।

दोनो स्थानों से जबाब भी आ गये। दादा अव्दुर्ज्ा और वहाँ उस समय रहनेवाले उनके साम्रीसेठ अब्दुल्ला द्वाजी मपेरी ने

फौरन सब उचित प्रबन्ध फर दिया। स्थान-स्थान पंर रदनेवाले अपने आदृतियों को मेरी सहायता करने के लिए तार कर

दिये.। तदनुसार मेरित्सवर्ग केभारतीय व्यापारी ज्ञोग मुमे आकर मिले। उन्होंने मेरी खूब दिलजमई करते हुए कहा कि

मेरेजेसे कई कबुए' अनुभव उन सबको भी हुए थे;पर वे उनके आदी दो गयेथे,इसलिए उसमें उनको कोई विशेष अपमानजंनक थात न'सालस होतो थी। व्योपार भी करनां और