दक्षिण अफ्रीका का उत्मामरद
हा कक ०
साथ नकतें कर ढालों। एक महीने के अन्दर १०,००० आदमियां ,
के दस्तजत की दरख्वास्त लाढे रिपत के पास रवाता की गयी
और मेरा उस वक्त का काम पूरा हुआ |
मैंनेरख्सत माँगी । पर जनता में श्रव इतना उत्साह नई
गया था कि वह मुमेजाने के जिए इजाजत ही नहीं देंठी थी।
उसने कहा--आप ही तो यह सममाते हैं फ्रि हमें जड़मूंस से उखाढ़ फेंकने कीयह शुरुआद ही है। कौन कह सकता ६
विलायत से हमारी इस दरख्वात्त का क्या उत्तर आवेगा|इसाएं उत्साह आप देख चुके हैं।हम लोग काम फरने केलिए तैयार हैं“ इच्छा भी खूब है। हमारे पाम धन की कोई कमी नहीं। पर यदि शगुआन हो तो यह किया-कराया सच चौपट हो जायेगा। इसलिए हमारा तो ख्यात हैकिभर भी कुछ रो आप यश ढहरें; अब आपका यही धम है। भुमे भी मालूम हुआ कि यहीं
पर कोई स्थायी सस्या की स्थापना द्वोजाय तो बढ़ा अच्छा दो। पर मेंरहूँकह्दों और किस तरदद ! उन्होंने मुझे तनस्वाह तने के लिए कह्दा, पर सैंने इस बात से साफ इन्कार कर दिया था सावेजनिक काम वड़ी-बड़ी तनसख्वाहँ लेकर नहीं हो सकते। फिर मैंतो केबल नींवे ढालनेवाला था। मेरे तत्कालीन विचारों के अनुसार मुझे इस तरद रहना चाहिए था। जो मेरी वेरिस्टरी
और बाति दोनों को शोभा दे। श्रर्थात्रहन-सहन भी खर्चीली
ही थी। जनता पर दबाव ढालकर घन इकट्ठा करके आन्दोलन
को चढाना और तिसपर मेरी जीविका का भार भी उस पर शद्
जाये यह दो परस्पर-विरोधी काम कैसे हो सकते थे १ फिर
इससे मेरी कार्ये-शक्ति भोठोकम हो जाती। और भी अनेक कारणों से मैंतेसावंजनिक सेवा के ज्िए तनख्वाहक्षेत्रे सेसाफ
इन्कार कर दिया। पर मैंनेसुकाया यदि आपमें से खास-छ्लास