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“” / भारतीयों ने क्याकिया १
व्यापारी मुमे अपना वकील बना लेंऔर उसके लिए मुमे। पदल्ते
ही से रेटिनर दे दिया करें, वो मेंरहने के लिए तंयार हूँ।
एक साज्ञ का रेटिनर पहले देना होगा | ऐसा करके देख लें |साल के आखिर मेंअपने काम का हिसाब कर लेंगे ।अगर उचित मालूम हुआ तो काम आगे चलावेंगे। सबने इस बात को पसन्द
किया। मैंने वकालत की सनद के लिए दरख्वास्त दी | पर बहाँकी ज्ॉ सोसायटी--वकील मण्ठल्त नेमेरी प्रथना काविरोध किया । उनकी दलील एक ही थी। नेटाल के कानून की मन्शा के अनुसार काले या गेहुँए रंग के लोगों को यहाँ पर वकालत करने की इजाजत कभी नहीं दी जा सकती। पर वहाँके पिख्यांत वकील स्व० श्री ऐस्कंव ने तो मेरी उस दरख्वात्त की पुष्टि की थी। वे दादा अबदुल्त्ा के बढ़ेवकील भी थे। बढ़ी अदालत ने
चकील मण्डल की दृक्नील को रद करके भेरी दरख्वात्त कोमजूर
किया। इस प्रकार इच्छा न होते हुए भी वकीत्-मंडल का विरोध मेरी ख्याति का एक दूसरा कारण हुआ | दक्षिण अफ्रीका के समाचार-पत्रों में सेकितनों ही नेवकीक्-संडल की हँसी उड़ायी
और कितनों दी ने मुझे घन्यवाद दिये। -
पहले जो अस्थायी कमेटी बनायी गयी थी वद्दी अब स्थायी बना दी गयी। मैंने महासभा का एक सी अधिवेशन नहीं देखा था; किन्तु उसके विषय में कुछ पढ़ा जरूर था । भारत के
पितामद्द के दशन भी कर चुका था | उनकी मेंपूजा करता था।
सो मेंभद्दासभा का भक्त क्यों न होता ? यह भी इच्छा थी कि “महासभा को लोकप्रिय बनाया जाय। सो एक नौजवान, नवीन तास-रूप हूँढनेके माग़े में क्यों पड़ता ? इसका भी बढ़ा डर
था कि इसमें कहीं भूल हो जाये तो! इसक्षिए मैंने तो यही
सक्षाह दी कि कमिटी का नास “सेटाल इण्डियन् कांग्रेस” हो |