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भारतीयों ने क्या किया £ ,
व्यादातर दृचशियो में फैला हुआ था। अतः उनको जुलू भाषा प्रौर उस जाति के रीति-रिवाज़ों से अच्छा परिचय था। स्वभाव बड़ा शान्त और मिलनसार । उतना ही बोलते जितने की जरूरत एूती |यह सब में यह-बताने के लिए लिख रहा हूँ किभारी अबाबदेही के ओहदे का कास करने के लिए अंग्रेजी भाषा की अथवा अन्य प्रकार के अक्तर-ज्ञान की जितनी जरुरत होती
है,उससे कहीं अधिक जरूरत तो सचाई, शान्ति, सहनशीक्षता, दृदता, प्रसंगांवधान, हिम्मत और व्यवद्दार-बुद्धि की द्वोती है।
अगर येन हो श्रच्छे-से-अच्छा अक्षर-ज्ञान भो सार्वजनिक काम
के लिए निरथक साबित होता है। सन् १८६६ मे मेंभारत लौटा । कल्नकत्ता होता हुआ आया, क्योझि उस समय कलकत्ता जानेवाली नेटाल के स्टीमर आसानी से मिल सकते थे |गिरमिटिये कलकत्ता से या मद्रास से जहाजः
पर चढ़ाये जाते थे।कलकत्ते सेबम्बई आते समय रास्ते में एक गाढ़ी मेरे हाथ से छूट गयी। अतः एक दिन के लिए मुमे;
इलाहाबाद में ही ठहरना पड़ा। बस, वहीं से मैंने अपना काम शुरू कर दिया | पायोनियर के मि० चेजनी से मिल्षा। उन्होंने मेरे साथ-बड़ी सभ्यता और भ्रेम सेबात-चीत करो, और प्रामा-
खिकता-पूर्वक मुझसे साफन्साफ कह दिया कि उनका दिल दक्षिण अफ्रीका के उन संस्थानों (सरकारों ) कीओर अधिक
आुका हुआ है। लेकिन उन्होंने मुझसे यह वादा किया कि अगर
मेकुछलिखूँ तोउसेपढ़कर उसपर एक टिप्पणीवह जरूर लिख देंगे। मेने इसी को बहुत माना | दक्षिण अफ्रीका के
भारतीयों की दशा का परिचय कराने बाला एक ट्रेक्ट मेंने लिखा ओर उसे अखबारों मे भेज दिया। फरीब-करीब सब अखबारों में उसपर ,टिप्पणियाँ निकली । मुझे उसके दोन्दों संस्करण