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मारतीयों ने क्या किया |
देना होगा ।पूना मेंदो पक्ष हैं। एक सावेजनिक सभा का और दूसरा दक्खिन सभा का |
मैंने कह्ा--“हाँ, इस विषय मेंतो मेंकुछ कुछ जानता हूँ।” ल्ोकमान्य-यहाँ पर सभा करना तो एक आसान बात
है। पर मैंदेखता हूँ किआप अपना सचाल सब पक्षों के सामने पेश करना चाहते हैंऔर सद्दायता भीसबकी चाहते हैं। इसे में
चहुत पसंद करता हूँ। पर यदि आपकी सभा में हम्ममें सेकोई
अध्यक्ष दो तोदक्खिन सभावाले नहीं आवेंगे। और यदि उनमें से कोई अध्यक्ष होगा तोहम कोई न जावेंगे। इसलिए आपको कोई तटस्थ अध्यक्त हूँदवाचाहिए। मैंतो इस विषय मेंकेवल सूचना-भर कर सकता हूँ। दूंसरी सुद्दायता मुकसे न दो सकेगी। थ्रो, भांडारकर को जानते हैं !अगर न जानते होंतो भी उनके "पास अवश्य जाइएगा। वे तटस्थ माने जाते हैं। राजनैतिक
इत्तचत्नों में कोई भाग भी नहीं लेते। पर संभव है आप उनको
ललचा सकेंगे। मि० गोखले से इस बात का जिक्र कीजिए ।
उनकी भी सलाद लीजिए। बहुत संभव है,वे भी मेरी ही जैसी
सलाह देंगे । अगर प्रोफेसर भांडारकर अध्यक्ष होंतो भुमे
यकीन हैकि सभा के काय को दोनों पक्त उठा त्ंगे। हम तो इसमें आपकी पूरी सहायता करेंगे ।”
यद्द सलाद लेकर मेंगोखले जी के पास पहुँचा। इस पहली मुलाकात दी मेंउन्होंने मेरे हृदय में जिस प्रकार राज्याधिकार प्राप्त करलिय।, उसका बर्णुन तोमेंकिसी अन्य प्रसंग पर लिख गया हूँ । जिज्ञासुओं को चाहिए कि वे “यंग इंडिया! या
'जवजीवन' की फाइल को देखे | लोकसान्य फी सलाह को ' देखो थग इंडिया! ता. १३-७-२१ : नवजीवन! ता० २८-७-२१