पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/८१

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दक्किण अफ्रीका का सत्याग्रह

गोखलेजी ने भी पसन्द किया । फौरन मेंडा० भांठारकर केपारस

पहुँचा। उन विद्वान्‌ बुजुर्गके दर्शन किये । नावाल का दिस्ता ध्यानपूवक सुनकर उन्होंने कह्द--/आपसे यह बाव ह्िपीनही

है कि मैंसाबंजनिक हलचल्ों मेंबहुत कम भाग जेता हूँभर अब तो बूढ़ा भी हो गया। फिरभी आपको बातों ने मेरे दिल पर गहरा असर किया है। मालूम होता हैआप सभी पत्तों की सहायता लेने चाहते हैं। साथ ही आप भारतीय राजनैतिक हंक्षचलों सेअपरिचित भी मातम होते हें। दौजवान भी हैं। इसलिए दोनों पक्षों सेकहिए कि मैंने आपकी बात को मारते

लियाहै।सभा होने पर उसमेंसेकोईभी मेरे पासअगर बुलाने झा जायगा तो मैं उसी वक्त चत्ा आऊँगा। पूना में

- सुन्दर सभा हुई। दोनों पह्योकेनेता हाजिर थे, और दोनों पक्तकेनेताओं नेभाषण दिये।

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मैमद्रास गया। वहाँ जस्टिस सुन्रह्मस्यम्‌ आयर से मित्ा

और आनंदचालुं, « हिन्दू ” के तत्कालीन सम्पादक श्री सुनद्वश्यम्‌ और “ मद्रास ” के सम्पादक परमेश्वर पिल्शाई प्रस्यात वकील भाष्यम्‌ आयगार, सि. नाटने बगैरा से मिला

वहाँ भो सभा हुई। वहाँसे कल्कऊत्ता गया। वहाँ पर सुरेन्द्रवाथ बनजों, महाराजा सत्येन्द्रनाथ टैगोर, 'इंग्लिशमेन! के सम्पादंक स्वर्गीय श्री सास्डसे आदि से भी मित्रा | वहाँ सभा की

तैयारियोंहोरही थीं कि इतने में--अर्थात्‌ नवम्बर मास में

नेटाक्ष कादार मिला कि 'एक दम चले आझो।' मैंसमम गया कि भारतीयों के विरुद्ध कोई नवोन श्रान्दोजन फिर से खड़ा हुआ है | इसलिए कत़कता का काम वैसा ही धोड़कर मे दापिस लौटा और वम्बई से जानेवाले पहले ही स्टीमर मेंसवार

ही गया । इसहदीमर को दांदा “अब्दुल्ला कीदुकान नेखरोद।