७७
भारतीयों ने क्या किया !
था। अपने साहसों मेंनेशल और पोखन्दर के घोच स्टीमर घलाने को उनका यह पहला साहस था। रटीमर का नाम
'क्ोलेंड' था। इस स्टीमर केवाद फोरन ही पर्शियन कंपनी का आगवोट “नादरी” भी नेटाज् केलिए रवाना हुआ | भेरा टिकट 'ज्ेलैंड' का था| साथ में बाल-वच्चे भी थे। दोनों स्टीमरों में
सब मिलाकर दक्षिण अफ्रीका जानेवाले कोई ८०० मुसाफिर
होंगे। भारत में मैंने जो श्रान्देलन किया उसका असर बहुत भारी हुआ। बहुत से मुख्य-मुझ्य समाचार-पन्नों मेउसपर टिप्पणियाँ भो निकर्ती ।सो भी इतनी कि रायटर नेइसके अनेक
तार भी भेले | पर यह बात तो नेटाल पहुँचने पर मुझेमालूम
हुई। इलैंड भेजे गये तारों पर से चहाँके रायटर के प्रतिनिधि
नेएक छोटा-सा तार दक्षिण अफ्रोका मेंभी भेज्ा। मैंनेभारत में
लो कुछ किया था, उसे कुछ नमक-मिर्च लगाकर वह तार दिया
गया था। ऐसी श्रत्युक्तियाँ हम कई वार देखते हैं।और यह
सब जान-बूभकर नहीं होता | वहुकाजी लोग अखबारों को ऊपर
ऊपर देख लेते हैं|कुछ-कुछ उनके अपने ख्यात्र भी होते ही हैं।
वे एक ढाँचा वनाते हैं,तहाँ इनका दिमाग कुछ और ही बना
लेता है। फिर यह जहाँ-महाँ पहुँचता है बहो-बहाँ इसका और ही अथे लगाया जाता है। और यह सब हेतुपूवेक नहीं होता ।
' सावेज़निक प्रवृत्तियों मेंयह एक खतरा है।एक तरह से यह
उसकी एक हृद भी है। भारत मेंमैंने नेटाल के गोरों परआरोप किये थे। गिरमिटियों पर लगाये गये ३ पाउंड के कर पर सेने बहुत सरझ्त भाषण दिया था। सुन्रह्मस्यम् नामक एक गरीब
गिरमिटिये पर उसके माज्षिक ने वढ़ी बेरहमी के साथ हमला
, किया |उसको जो जखम हुआ था, उसे मेंने देखा था। उसका « सारा केस मेरे पास,था । इसलिए उसका ठोक-ठीक वर्णन में