पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/८८

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परे

आत्तीयों ने क्या किया ह

कि वह मुझे अकेला न उतरले दे, वास्तवं में ऐसी कोई बाद नहीं थो कि कप्तान मुझे जबरदस्ती से रोक सकता हो । यह तो मेरे सर पर मेंढरानेवाले खतरे से बचने के लिए एक सूचना मात्र

थी। परमैंने सोचा कि मुके यहसूचना मान लेनी चाहिए। अपने वाल धच्चों को मैंने सीधे घर नहीं भेजा, घल्कि डर्चन के विल्यात व्यापारी और अपने पुराने मिल तथा सित्र पारसी

रुस्तमजी केयहाँ भेज दिया और उन्हें कहा किमेंभी वहाँ

मिलगा। मुसाफिर वगेरा सब उतर गये कि इतने ही मेंदादा

अवदुल्ता के वकील और मेरे मित्र मि० लाटन आये । उन्होंने पूछा “आप अभी तक क्यो नहीं उतरे १” मैंने मि० ऐस्कंच के पत्र कीबात कही । उन्होंने कहदा-“मभुमे तो यह

जरा भी पसन्द नहीं कि शाम तक आप यहाँ बेंठेचेठे राह देखें

, और फिर एक अपराधी या चोर की तरद्द चुपके चुपके शहर

में जावें | अगर आपको कुछ भय न मालूम द्वोवा हो हो अभी भेरेद्दी साथ क्‍यों नहीं चले चल्षते ! हम लोग इस तरह शहर में से होकर पेदल ही चलते चलेंगे, मानों कुछ

हुआ द्वी न दो ।” मैंने कहा--मैं नहीं मानता कि मुझे.

इसमें किसी प्रकारकाभय है। मेरे सामने तो केबल यही

सवाल है कि मि० ऐस्कंच की सूचना को मानूँ या नहीं, यह

“उचित होगा या अनुचित । मुझे यह भी सोच लेना है कि इसमें

कप्तान की जिम्मेदारी का तो कोई सवात्न नहीं है[” मि० लाटन

ने हँसकरे कहू--“मि० ऐस्कंव ने आपके साथ अभी तक ऐसी

कौन भल्ताई को हैजिससे उनकी सूचना पर आपको छुछ भी + विचार करना पढ़े फिर आपके पास यह मान लेने लिए भी

क्या आधोार हैकि उनकी सूचना में केवल भलमनसाहत ही है और कोई रहस्य नहीं ?शहर मेंजो छुछ हुआ हैऔर उससें '