पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/८९

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दल्षिण अ्रफ्कीका का सत्यामद

के

इन भाई साहब का जो छुछ हाथ हैउसे आपकी अपेक्षा में अधिक भ्रच्छी तरह जानवा हूँ। (मैंने सिर दिल्लाकर जवाब दिया )पर इतने पर भी हम यह क्षण भर के लिए मात ऐंवि

हैंकि उन्होंने भतमनसाहत के सांथ द्वी यह सिफारिश को

होगी । फिर भी इतना तो मेंअवश्य जानता हैँ कि उनकी सूचना पर खयाज्ञ करने से आपकी सिवा बदनामों के औररथ न होगा ! इसक्िए मेरी तो यही स्षाह हैकि यदि आप तयारे

हों,तो अभी मेरे साथ माथ ही चले चलें। कप्तान तो अपने हो

आदमी हैं। उन्तकी पिम्मेदारी हमारी जिस्मेदारी है । इनकी

पूछुनेवाणे आखिर दादा अच्दुल्ता ही तो हैं। वेइस विषय में जो सोचेंगे सो में मत्ती भांति जानता हूं। क्योंकि उन्होंने इस भामत्े मेंबड़ी वद्दादुरी जतायो है!” मैंनेकह्ा-“तो चलिए, झुमे कुछ भी तैयारी करनी नहीं है। सिर पर पगड़ी मर रखना है। कप्तान कोखबर करके चले चत्ें !!”बस कप्तान की भात्ना लेकर हम शोग चले ।

भि० ल्लाठन डर्वेन के बहुत पुराने औरबढ़ेझ्यातनामा वकील

ये.। मैंभारत गया उसके पहले ही उनके साथ मेरा बहुत धन्िष्ट सम्बन्ध हो चुका था । अपने महत्वपूर्ण मुकवसों मेंमैं उन्हीं कीसहायता लेता थाऔर कई वार उनको 'अपने मामलों

मेंबढ़ा धक्ौज्ञ भी बताता था। वे वढ़े बहादुर आदमी थे शरीर के ऊँचे-पूरे थे। इसारा राल्ता उबंन के बढ़े सेबढ़े मुदल्लों में सेगुलरता था ।हम लोग जह्दाज से उतरे उस वक्त शाम के कोई साढ़े चार

चजे होंगे । आकाश मेंयों ही कुछ मेघ-ये, पर सूरज को छिपाने के लिए थे काफी ये। यस्वा इतना लम्बा था कि पैदल दी चत्े जायें तो सेठ रस्तमजी के बेंगले पहुँचने केलिए कम-से-कम एक घंटा