पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/९०

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भारतीयों ने क्या किया !

दो जरूर लगता | हम उतरे कि कितने ही लड़कों ने हमे देखा । बढ़े आदमी तो उनमें थे दो नहीं। साधारणठया बन्दरों पर

जितने आदमी होते हैं,बस उतने ही मालूम होते थे। मेरे जेसी पगढ़ो पहननेवाला तो अकेला मेंही था न। लड़कों ने मुकेफोरन पहचान लिया और 'ाँवी', गाँधी” इसे 'मारो', 'पीढो! 'घेरो! चिल्लाकर हमारी तरफ दोड़े। कोई-कोई कऋकड़-पत्थर भी

फेंकने लगे। फिर कितने ही अधड़ गोरे भी आकर उनमें शामिल हो गये |कोलाहल धीरे-धीरे और बढ़ा |मि० लादन को मालूम

हुआ कि पेदल जाना मानों खतरे को निमन्त्रित करना है। इस-

लिए उन्होंने रिक्शा मँगायी। रिक्शा एक छोटी सी टस्ृटम को कहते हैंजिसे आदमी खींचता है। में तोकभो रिक्शा मेंबैठा ही न था; क्योंकि मुझे ऐसी सवारी में बेठना बहुत बुरा मालूम होता था कि जिसे मनुष्य खींचता हो। पर आज मुमे भालूस

हाकि इस समय रिक्शा मेंसवार होना द्वीमेरा धर्म है। पर ने अपने ही जीवन मेंपाँच-साव कठिन अवसरों पर इस बात

को प्रत्यक्ष देखा हैकि परमात्मा जिसे बचाना चाहता हैचह स्वयं

भी गिरना चाहे तो नहीं गिर सकता । मैंउस समय गिरा नहीं;

इसका पूरा श्रेय अकेला मेंकदापि नहीं ले सकवा । रिक्शा खींचनेवाले हबशी लोग ही दवोते हैं। छोटे-बढ़े, सभी ने रिक्शा वाले को डराया कि तू इस आदमी को रिक्शा में बैठावेगा तो हमर सब तुमे पीटेंगे और तेरी गाड़ी को तोढ़ डालेगे। इसलिए

रिक्‍्शावाला तो 'खा' अर्थात्‌ नाकहकर चलता बना । और में

के रिक्शा मेंबैठतेद्वीबैठतेरह गया। अब सिवा पैदल चलकर जाने के हमारे लिए दूसरा चारा ही न था। हारे पीछे-पीछे तो एक श्वासा जुलूस जुढ गया।

जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गये, वैसे ही वैसे वह भी बढ़ता ही