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मांरतीयों ने क्या किया !
के लिए पुलिस“का एक दत्त भेज दिया ।इस दल ने आते ही मुझे अपने बोच मेंकर लिया |फिर आगे बढ़े। इसारा रास्ता
थाने के पास से होकर गुजरता था। वहाँ पहुँचे तो देखा कि कोतवाल साहब हमारो राह ही देख रहे थे। उन्होंने मुफे पुलिस-
चौकी के अन्दर जाने की सत्ञाह दी। मेंचे इस कृपा के लिए अहसानमन्दी जाहिर करते हुए कद्दा कि मुझे तोअपने मुकाम
पर ही जाना है।उबन के लोगो की न्यायब्त्ति परऔर अपने सत्य पर ही मुमे पूरा विश्वास है। आपने मेरे लिए पुत्तिप्त-दज्
भेजा इसके लिए मेंआभारो हूँ !इसके अतिरिक्त मिसेस अद्ै-क्जैण्डर ने भी मेरो रक्षा की है। अन्त में मैसकुशल रुप्तमजी के बँगले पर जा पहुँचा |लगभग शाम हो गयी थी । कुर्निंड के डाक्टर दाज्नी बरजोर रुस्तम जी यहीं थे । उन्होने मेरी देखभाल शुरू की |जखमो को जाँचा। चोट अधिक नहीं लगी थी |एक बन्द् चोट अधिक तकलोफ दे रहो थो |पर अभो शान्ति मेरे न॒प्ीव में नह थो। भेरे आते
'ही आते रुस्तमजी के मकान के सामने हजारों गोरे हकट्ट हो गये | रात चढ़ गयी थो | अतः बहुत से गुण्डे भो उनमें शामिल हो गये थे । लोगो नेरुस्तमजो सेकहला भेजा कि यदि तुम
गांधी को हमारे सुपु्द न करोगे तो तुल्दें और उसके साथ हम
तुम्दारी दुकान को भी आग लगा देंगे। पर वे इस तरद दरनेवाले
पुरुष नहीं थे।तबतक यह खबर पुल्निस सुपरिन्टेन्डेन्ट अलेक्जेर्टर के पास भी जा पहुँची ।उसी क्षण वे अपनो खुफिया पुलिस के एक दृल् को लेकर इस जम्मघट में चुपचाप आ घुसे और एक मंच मेंगाकर उसपर खड़े हो गये । फिर धीरे-धीरे लोगों से बातजीत करने के बहाने पारसो रुस्तम जो के घर के दरवाजे पर
अधिकार कर लिया, जिससे उसे तोड़कर कोई अन्द्र न जा सके