पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/९३

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दत्तिण श्रफीका का सत्याग्रह

पद

कहने की आवश्यकता नहीं कि उन्होंने अपनी खुफिया पुलिस के जवानों को पहले ही अभीष्ट स्थान पर छिपा रकखा था। वहा

पहुँचते ही अपने एक अधिकारी को हिन्दुस्तानी पोशाक पहना

हिन्दुस्तानियों के जैसा चेहरा रेंगकर हिन्दी व्यापारी की तरह अपने कोदिखाने फो.कद्द रक्खाथा , और उसे यद्द हुक्म दे रक्खा था कि वह मुझे मिले और कह्दे कियदि आप अपने मित्र की, उनके मेहमानों की, उनकी सम्पत्ति कीऔर अपने बाल-

बच्चोंकी रण करना चाहते हैं तोआपको एक दिन्दुस्‍्तानी सिपाही

का सा लिवास पहनकर पारसी के गोदाम में होकर इसी भीड़

मेंसे मेरे आदमी के साथ पुलिस चौकी पर पहुँच जाना चाहिए।

इस ग्ञी के मुद्दाने परआपके लिए गाद़ी तैयार रक्खी है। आपको और अन्य ल्ञोगों कोबचाने का अब केवल यद्दी उपाय

मेरे हाथों में है।ज्ञोग इतने उत्तेजित हो गये हैंकि उन्हें रोकने

के लिये मेरे पास अब कुछ भी साधन नहीं है। अगर आप जल्दी

न करेंगे तो यह सकान अभी जमीन दोस्त जायगा। इतना ही नहीं बल्कि इससे घन-गन की जो द्वानि होगी, उसकी मेंकल्पना भी कहीं कर सकता |

बह मिला ।यह सब उसने मुझ से कद्दा। फोरत सारी परिस्थिति मेरे ख्याल मेंआा गयी। मेने उसी समय सिपाही की पोशाक मांगी, उसे पहना और वहाँ से मिकलकर सकुशत्ञ पुलिस चौकी पर जा पहुँचा। हधर कोतवाल साहव प्रसंगोचित गीत गवाकर ओर भाषण द्वारा भीड़ को बातों मेंलगा रहेथे । ज्यों ही

उन्हें मालूम हुआ कि मैंपुलिस चौकी पर सद्दी सलामत पहुँच गया हूँकि उन्होंने काम की वात छेड़ी | “आप लोग क्या चाहते दो १? ५हम् गांधी को चाहते हैं।”