“६१
“भारतीयों ने क्या किया १
समथन दी किया |इससे मेरी और साथ ही भारतीयों की प्रतिष्ठा और भी बढ़ गयी। गोरों नेयह भल्ती भाँति देख लिया कि गरीब
“हिन्दुस्तानी भी भामद नहीं होते, व्यापारी लोग मीअपने व्यापार
की जरा भी पर्वाह न करते हुए स्वाभिमान के लिए; खदेश के
“लिए लड़ सकते हैं।
इससे यद्यपि जाति को तो एक तरह से दुःख सहना पढ़ा, और स्वयं दादा अबदुल्ला को तो बहुत भारी नुकसान उठाना
“पढ़ा, तथापि इस दु:ख के अन्त मेंलाभ ही हुआ । क्नौम को
अपनी शक्ति का अनुमान हुआ और आत्मविश्वास बढ़ा!
भुमे अधिक अनुभव हुआ और उस दिन का विचार करते हुए
अब तो मालूम होता है. कि परसात्मा' मुझे सत्याग्रह के लिए
“धीरे-धीरे तैयार कर रहा था।
नेटाल की घटनाओं का असर विज्ञायत पर भी पड़ा। मि० 'चेस्बरलेन ने नेटाल की सरकार को तार,द्या कि जिन लोगों ने
“मुझ पर हसक्ा किया उन पर काम चलाया जाय और मुझे न्याय “दिया जाय ।
मि० ऐस्कच न््याय-विभाग के मन्त्री थे। उन्होंने मुझे तुज्ञाया । “मि० घेम्बरलेन फे तार की बात फट्दी | इस बात पर दुःख
“प्रकट किया कि मुझे चोट पहुँची और में बच गया, इसलिए
सन्तोष भी व्यक्त फिया। उन्होंने कहा--“ मेंआपको विश्वास
“दिलाता हूँकि मैंयह जरा भी नहीं चाहता था कि आपको या आपकी कौम के किसी भीआदमी को घोट पहुँचे। मुमे यह् 'डर था कि कहीं आपको,चोट न पहुँचे, इसीलिए मैंने आपके पास जहाज से रात को उतरने की वह सूचना भेजी थी। “पर आपको वह सूचना पसन्द नहीं आयी |मेंइस वात के लिए आपको जरा भी दोष नहीं देना चाहता किआपने मि० ज्ादन