पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१०२

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नाना खिआन पुरान बेद विधि चउतीस अखर मांही । बिआस बिचारी कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही ॥ 2 ॥ सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बड़े भागि लिव लागी । कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी ॥3॥ सुरतरु - कल्प वृक्ष । चिंतामनि- विशेष प्रकार की कल्पित मणि जिसमें जो मांगो वह देने की सामर्थ्य मानी जाती है। कामधेनु - स्वर्ग की गाय, जो सब कामनाओं की पूर्ति करने वाली मानी जाती है। चारिपदारथ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । असट सिद्धि - योग सिद्धि से प्राप्त होने वाली आठ अलौकिक शक्तियां - अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्य और वशित्व । नव निधि - कुबैर की पद्म, महापदुम शंख आदि नौ निधियां । खिआन- आख्यान, कथाएं, प्रसंग । चउतीस अखर- ओउम् तथा क से ह तक के अक्षर । - - बिआस – प्रसिद्ध ऋषि व्यास । सरि- सदृश, समान । फुनि – पुनः, फिर । लिव- प्रभु-प्रेम। पावन जस माधो तेरा, तुम दारुन अधमोचन मेरा | टेक । कीरति तेरी पाप बिनासे, लोक बेद यों गावै । जौं हम पाप करत नहिं भूधर, तौ तूं कहा नसावै॥॥॥ जब लग अंक पंक नहि परसै, तौ जल कहा पखारै । मन मलीन विषया रस लंपट, तौ हरि नाम संभारै ॥ 2 ॥ जो हम बिमल हृदय चि अंतर, दोष कौन पर धरि हौ । कह रैदास प्रभु तुम दयाल हौ, अबंध मुक्त का करिहौ ॥ 3 ॥ पावन – पवित्र | दारुन अधमोचन- घोर पापों का नाश करने वाले । - कीरति - कीर्ति, यश जौ- यदि । भूधर - पर्वत जैसा, घोर। कहा- नसावै - दूर करोगे, नष्ट - करे। पखारै - धोओगे। अबंध - बन्धन रहित, मुक्त। करोगे । अंक - दामन | पंक- कीचड़ । -- -क्या, किस। परसै- स्पर्श संत रविदास वाणी / 105