पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१०५

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मुकंद मुकंद जपहु संसार । बिनु मुकंदु तनु होई अउहार ॥ सइ मुकंदु मुक्ति का दाता । सोई मुकंदु हमरा पित माता । जीवत मुकंदे मरत मुकंदे । ताके सेवक कउ सदा अनंदे ॥ 1 ॥ रहाउ ।। मुकंद मुकंद मसतकि नीसानं ॥ सेव मुकंद मसतकि नीसानं ॥ सेव मुकंद करै बैरागी । सोई मुकंदु करै उपकारु । हमरा कहा करै ससारु ॥ मेटी जाति हुए दरबारी । तू ही मुकंद जोग जुगतारि ॥ 3 ॥ उपजिओ गिआनु हुआ परगास । करि किरपा लीने कीट दास ॥ कहू रविदास अब तृसना चूकी । जपि मुकंद सेवा ताहू की ॥ 4 ॥ अउहार -नष्ट । मसतिक नीसानं - माथे पर निशान पड़ने तक । लाधी- प्राप्ति । सोई मुकंदु दुरबल धनु लाधी - वही भगवान् निर्धन की सर्वोत्तम अर्थ प्राप्ति है, भगवान निर्धन का धन है। दरबारी - दरबार के सदस्य, भक्त । उपजिओ- - उत्पन्न हुआ। परगास - प्रकाश । कीट दास - कीड़े के समान दीन, भक्त अथवा क्रीत दास । 108 / दलित मुक्ति की विरारात: संत रविदास -