पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१०६

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चमरटा गांठि न जनई । लोगु गठावै पनही ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ आर नहीं जिह तोपउ नहीं रांबी ठाउ रोपउ ॥ 1 ॥ लोग गंठि गीठे खरा बिगूचा । हउ बिनु गांठे जाइ पहूंचा ॥ 2 ॥ रविदास जपै राम नामा । मोहि जम नाही कामा ॥ 3 ॥ चमरटा – चमड़ा । पनही - जूता । आर - मोचियों का एक औज़ार। रांबी- - - मोचियों का एक औजार । तोपउ - टांका लगाऊं, सीऊं । रोपउ – लगाना, बैठाना | - - । -- - खरा — खड़ा । बिगूचा – असमंजस में पड़े हुए, भ्रम में पड़े हुए। हउ – (हौं) मैं। बिनु – बिना ही । जाई पहुंचा- पहुंच गया हूं। हरि हरि हरि हरि हरि हरि हरे । हरि सिमरत जन गए निसतरि तरे ॥ ॥ ॥ रहाउ ॥ हरि के नाम कबीर उजागर । जनम जनम के काटे कागर ॥ ॥ ॥ निमत नामदेउ दूधु पीआइआ। तउ जग जनम संकट नहीं आइआ ॥ 2 ॥ जन रविदास राम रंगि राता । इउ गुर परसादि नरक नहीं जाता ॥ 3 ॥ निसतरि तरे – मुक्ति प्राप्त कर गए। कागर - कागज़, (पापों के) दस्तावेज । - निमत – निमित । संत रविदास वाणी / 109