पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१०८

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खटु करम कुल संजुगत है हरि भगति हिरदे नाहिं । चरनारबिन्द न कथा भावै सुपच तुलि समानि ॥ ॥ ॥ रे चित चेति चेत अचेत ॥ काहे न बालमीकहि देख ॥ किसु जाति ते किह पदहि अमरिओ राम भगति बिसेख ॥ रहा ॥ सुआन सत्रु जातु सभते कृस्न लावै हैतु । लोग बपुरा किया सराहै तीनि लोक प्रवेस ॥ 2 ॥ अजामलु पिंगुला लुभतु कुंचरु गए हरि कै पास। ऐसे दूरमति निसतरे तू किउ न तरहिं रविदास ॥ 3 ॥ - - खटु करम – खोट कर्म, अथवा षट्कर्म, यज्ञ करना और करवाना, पढ़ना और पढ़ाना तथा दान लेना और दान देना । संजुगतु - संयुक्त । चरनारबिन्द - चरण कमल। सुपच - श्वपच, चांडाल । अचेत- बेसमझ । अमरिओ- अमर हो गया। बिसेख - विशेष । सुआन सत्रु - श्वपच, चाण्डाल । अजातु - नीच जाति का। बपुरा – बेचारा, दीन । अजामलु - अजामिल नाम का पापी ब्राह्मण जो मृत्यु के समय अपने पुत्र 'नारायण' का नाम पुकारने से तर गया | पिंगुला - एक प्राचीन वेश्या जो अपनी धर्मनिष्ठा केकारण तर गई । लुभतु - लुब्धक शिकारी जिसने भगवान् कृष्ण के चरणों में बाण मारा था। कुंचरु - कुंजर, हाथी, गजेन्द्र जो ग्राह से पकड़े जाने पर भगवान् का स्मरण कर मुक्त हुआ था। निसतरे - पार कर दिये। - थोथो जानि पछोरा रे कोई । जोइ रे पछोरौ जा मैं निजकन होई ॥ टेक ॥ थोथी काया थोथी माया । थोथा हरि बिन जनम गंवाया ॥ 1 ॥ थोथा पंडित थोथी बानी । संत रविदास वाणी / 111