पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१०९

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थोथी हरि बिनु सबै कहानी ॥ 2 ॥ थोथा मंदिर भोग बिलासा । थोथी आन देव की आसा ॥ 3 ॥ साचा सुमिरन नाम बिसासा । मन बच कर्म कहै रैदासा ॥ 4 ॥ थोथो – निस्सार। पछोरौ - फटको । जोइ - देखभाल कर । निजकन- - आत्मसुख के कण। बिसासा- विश्वास । - भाई रे भरम भगति सुजान । जौ लौं सांच सो नहिं पहिचान ॥ टेक ॥ भरम नाचन भरम गायन, भरम जप तप दान । भरम सेवा भरम पूजा, भरम सो पहिचान ॥ 1 ॥ भरम षट क्रम सकल सहता, भरम गृह बन जानि । भरम करि करि करम कीये, भरम की यह बानि ॥ 2 ॥ भरम इंद्री निग्रह कीया, भरम गुफा में बास भरम तौ लौं जानिए, सुन्न की करै आस ॥ 3 ॥ भरम सुद्ध सरीर तौ लौं, भरम नांव बिनांव । भरम भनि रैदास तौ लौं, जौ लों चाहै ठांव ॥ 4 ॥ भरम भक्ति -झूठी, केवल दिखावे की भक्ति । पहिचान-परिचय, ज्ञान। - वन जानि-वन में जा कर रहना । वानि - स्वभाव | इंद्री निग्रह - इंद्रियों को वश - में करना सुन्न - शून्य । तौ लौं - तब तक । जौ लौं – जब तक । ठांव - स्थान, - - ठिकाना, परिग्रह । भरम भनि ठांव- जब तक मन में परिग्रह अथवा संचय की भावना है, तब तक सभी अन्य साधनाएं व्यर्थ हैं। 112 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास