पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/११०

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ऐसे जानि जपो रे जीव । जपि ल्यो राम, न भरमो जीव ॥ टेक ॥ गनिका थी, किस करमा जोग । पर-पुरुष सो रमती भोग ॥ 1 ॥ निसि बासर दुस्करम कमाई । राम कहत बैकुंठे जाई ॥ 2 ॥ नामदेव कहिये जाति कै ओछ । जाको जस गावै लोक ॥ 3 ॥ भगति हेत भगता के चले । अंकमाल ले बठिल मिले ॥ कोटि जग्य जो कोई करै । राम नाम सम तउ न निरतरै ॥ 5 ॥ निरगुन का गुन देखौ आई । देही सहित कबीर सिधाई ॥ 6 ॥ 11 मोर कुचिल जाति कुचिल में बास । भगत चरन हरि चरन निवास ॥ ॥ 7 ॥ चारिउ बेद किया खंडौति । जन रैदास करै डंडौति ॥ 8 ॥ - गनिका - वेश्या । एक पौराणिक कथा है कि गणिका ने अपने तोते को राम-नाम का पाठ पढ़ा कर मोक्ष प्राप्त कर लिया। निसिबासर - दिन रात । दुस्करम – दुष्कर्म, पाप। ओछ- ओछी, नीच | अंकमाल - माला । बठिल- बीठलदास । एक प्रसिद्ध भक्त । किवंदती है कि भक्त बीठल माली का काम करता था। ध्यान-मग्न होने के कारण वह एक दिन राजा के यहां माला न पहुंचा सका। उस दिन भगवान् के स्वयं उसका रूप धारण कर राजा के यहां हार पहुंचा दिया। जग्य–यज्ञ । निस्तरै—मोक्ष प्राप्त करे । देही सहित – सशरीर । कुचिल - निम्न, मैला, गन्दा | खंडौति - खण्डन । डंडौति- नमस्कार । संत रविदास वाणी / 113