पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१११

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नामु तेरो आरती भंजनु मुरारे । हरि के नाम बिनु झूठे सगल पसारे ॥ 1 ॥ रहाउ ।। नामु तेरो आसनो नामु तेरे उरसा । नामु तेरा केसरो ले छिटकारे ॥ नामु तेरा अंभुला नामु तेरे चंदनो । घसि जपे नामु ले तुझहि कउ चारे॥1॥ नामु तेरो दीवा नामु तेरो बाती नामु तेरो तेलु ले माहि पसारे । नाम तेरे की जोति लगाई भाइओ उजिआरो भजन सगलारे ॥2॥ नामु तेरो तागा नामु फूल माला भार अठारह सगल जूठारे । तेरी कीआ तुझहि किआ अरपउ नामु तेरा तू ही चवर ढोलारे ॥ 3 ॥ दसअठा अठसठे चारे खाणी इहै वरतणि है सगल संसारै । कहै रविदासु नाम तेरो आरती सतिनाम है हरि भोग तुहारे ॥ 4 ॥ — सगल पसारै – समस्त संसार । उरसा - चन्दन घिसने की शिला । अंभुला- जल। सगलारे—समस्त, सारा । तागा - धागा | भार - लोक । जूठारे- जूठे। दसअठा – अठारह पुराण । अठसठे – अड़सठ तीर्थ स्थान । चारे खाणी - सृष्टि के चार सूत्र अथवा चतुर्धा सृष्टि । सतिनाम - सत्यनाम । वरतणि - व्याप्ति । भोग– भोज्य वस्तु, नैवेद्य। - 114 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास