पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/११२

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आरती कहां लौ जोवै । सेवक दास अचंभो होवै । टेक । वावन कंचन दीप धरावै । जड़ बैरागी दृष्टि न आवे ॥ 1 ॥ कोटि भानु जाकी सोभा रौमै । कहा आरती अगनी हौमै ॥ 2 ॥ पांच तत्व तिरगुनी माया । जो देखै सो सकल समाया ॥ 3 ॥ कह रैदास देख हम माहीं । सकल जोति रोम सम नाहीं ॥ 4 ॥ आरती – नीराजना, थाली में दीपक सजाकर अभिनन्दन अथवा अर्चना - करना । कहां लौ-कहां तक । जोवै- देखूं । वावन - बौना । कंचनदीप - स्वर्ण - - दीप । कोटि-करोडों, अनन्त । भानु – सूर्य । रौमै - रोयां अर्थात अंशमात्र । होमै - - (अग्नि में) हवन करने पर । पांच तत्व - पृथ्वी, जल अग्नि, वायु और आकाश, - ये पांच तत्व है । तिरगुनी माया - सत्व, रज और तम- इन तीन गुणों से विशिष्ट माया अथवा प्रकृति । रोम - रोंगटा, रोयां, शरीर पर के बाल । रोम सम - बाल के समान, अत्यन्त क्षीण, अथवा अत्यल्प | दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ । फुलु भवरि जलु मीनि बिगारिओ ॥ 1 ॥ माई गोबिन्द पूजा कहा लै चरावउ । अवरुन फूलु अनूपु न पावउ ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ मैलागर बेर्डे है भुइअंगा। बिखु अमृतु बसहि इक संगा ॥ 2 ॥ संत रविदास वाणी / 115