पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/११३

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धूप दीप नईबेदहि बासा । कैसे पूज करहि तेरी दासा ॥ 3 ॥ तनु मनु अरपउ पूज चरावउ । गुर परसादि निरंजनु पावउ ॥ 4 ॥ पूजा अरचा आहि न तोरी । कहि रविदास कवन गति मोरी ॥ 5 ॥ थनहु – स्तन को। बिटारिओ- जूठा कर दिया है। भवरि– भ्रमर ने। मीनि- - मछली ने। चरावउ–चढ़ाऊं | मैलागार - मलय गिरि चंदन | बेर्हे है- लिपटे हैं। - - भुइअंगा—भुजंग, सांप। अनूप - अनुपम । नईबेदहि- नैवेद्य, पूजा में समर्पित - की जाने वाली भोज्य वस्तु । बासा - सुगन्ध | बिखु - विष पूज- पूजा अरचा- - पूजा । आहि न— नहीं हो सकी। - संत उतारै आरती देव सिरोमनिए । उर अंतर तहां बैसे बिन रसना भनिए ॥ टेक ॥ मनसा मंदिर मांहि धूप धुपइये । प्रेम-प्रीति की माल राम चढ़इये ॥ 1 ॥ चहु दिसि दियना वारि जगमग हो रहिये । जोति जोति सम जोती हिलमिल हौ रहिये ॥ 2 ॥ तन-मन आतम बारि तहां हरि गाइये री | भनत जन रैदास तुम सरना आइये री ॥ 3 ॥ देव सिरोमनिए – देव शिरोमणि, परम परमात्मा बिन रसना भनिए- ज़बान से कहे बिना, मौन ही। मनसा मंदिर - मनरूपी मंदिर । माल-माला । दियना - दीपक | बारि- जला कर । जोति - घी का दीया, ज्योति स्वरूप आत्मा। भनत – कहता है। सरना – शरण । — 116 / दलित मुक्ति की विरासत: संत रविदास