पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/११४

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गाइ गाइ अब का कहि गाऊं । गावनहार को निकट बताऊं ॥ टेक ॥ जब लग है या तन की आसा, तब लग करै पुकारा। जब मन मिल्यो आस नहिं तन की, तब को गावन हारा ॥ 1 ॥ जब लग नदी न समुद समावै, तब लग बढ़े हंकारा | जब मन मिल्यो राम सागर सौं, तब यह मिटी पुकारा ॥ 2 ॥ जब लग भगति मुकति की आसा, परम तत्व सुनि गावै । जहं-जहं आस धरत है यह मन, तहं तहं कछू न पावै ॥ 3 ॥ छाड़ै आस निरास परम पद, तब सुखि सति कर होई । कह रैदास जासौं और करत है, परम तत्व अब सोई ॥ 4 ॥ पुकारा - पुकार, टेर । हंकारा - अहंकार, अहंता, ममत्व का हारा - स्तुति गाना करने वाला । सुनि- सुन कर, श्रवण कर | आस - आशा । - भाव । गावन निरास – निराशा । सुखि - सुख, आनन्द । सति कर - सत्य का । और — भेद । - - जिह कुल साधु बैसनो हो । बरन अबरन रंकु नहीं ईसरु । बिमल जासु जानीऐ जगि सोइ ॥ 1 ॥ रहाउ । ब्रहमण वैस सूद अरु ख्यत्री । डोम चंडार मलेछ मन सोइ ॥ होइ पुनीत भगवंत भजन ते, आपु तारि तारै कुल दोइ ॥ 1 ॥ धंनि सु गाउ धंनि सो ठाउ । धंनि पुनीत कुटुंब सभ लोइ ॥ संत रविदास वाणी / 117