पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/११८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुम चंदन हम रेंड बापुरे, निकट तुम्हारे आसा । संगत के परताप महातम आवै बास सुबासा ॥3॥ जाति भी ओछी करम भी ओछा, ओछा कसब हमारा । नीचै से प्रभु ऊंच कियो है, कह रैदास चमारा ॥ 4 ॥ मुरारी - मुर नाम के दैत्य को मारने के कारण भगवान का एक नाम। सुरसरि—गंगा । गंगोदक - गंगाजल । स्वांति बूंद - स्वाति नक्षत्र में बरसने वाले जल की बूंद | विषै– विष, जहर । ओही - वही । रेंड - एरंड | बापुरे – दीन । - कसब-व्यवसाय | प्रीति सुधारन आव। तेज सरूपी सकल सिरोमनि, अकल निरंजन राव ॥ टेक ॥ पिउ संग प्रेम कबहूं नहिं पायो, करनी कवन विसारी । चक को ध्यान दधि सुत सों हेत है, यों तुमसे मैं न्यारी ॥ ॥॥ भवसागर मोहि इकटक जोवत तलफत रजनी जाई । पिउ बिन सेजह क्यों सुख सोऊं, विरह विथा तन खाई ॥ 2 ॥ मेट दुहाग सुहागिन कीजै, अपने अंग लगाई। कह रैदास स्वामी क्यों विछोहे, एक पलक जुग जाई ॥ 3 ॥ तेज सरूपी - तेज स्वरूप । अकल अखण्ड । निरंजन राव - -निर्लिप्त । चक- चक्रवाक । दधि सुत - चन्द्रमा न्यारी- अलग। जोवत- प्रतीक्षा करते हुए। तलफत -तड़पते हुए। रजनी - रात्रि | बिछोहे- अलग कर दिया। जुग— युग के समान । संत रविदास वाणी / 121