पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/११९

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या रामा एक तूं दाना, तेरी आदि भेख ना । तूं सुलताने सुलताना, बंदा सकिसता अजान ॥ टेक ॥ मैं बेदियानत न नजर दे, दरमंद बरखुरदार । बेअदब बदबखत बौरा, बे अकल बदकार ॥ 1 ॥ मैं गुनहगार गरीब गाफिल, कमदिला दिलतार । तूं कादिर दरिया वजिहावन, मैं हिरसिया हुसियार ॥ 2 ॥ यह तन हस्त-खस्त खराब, खातिर अंदेसा बिसियार । रैदास दासहि बोलि साहब, देहु अब दीदार ॥ 3 ॥ - दाना – बुद्धिमान । भेख – रूप | सुलताने सुलताना-बादशाहों का बादशाह, सम्राट | बंदा - सेवक । सकिसता – शिकस्ता, कमज़ोर । अजाना - अनजान । - - बेदियानत—बेईमान । न नज़र दे – ध्यान न दो | दरमंद – मज़बूर | बरखुरदार- सपुत्र (सेवक) । बेअदब - बड़ों का सम्मान करने वाला । बदबखत – अभागा। बौरा - पागल । बदकार- दुष्कर्म करने वाला । गाफिल – प्रमादी, गफलत करने वाला । कमदिला – तंग दिल । दिलतार – काले दिलवाला । कादिर - समर्थ । दरिया वजिहावन – भव सागर से पार करने वाला । हिरसिया – लालची, लोभी । हुसियार – होशियार, चालाक । हस्त — है | खस्त — खस्ता, विनाशशील । अंदेसा चिन्ता । बिसियार – बहुत । बोलि - बुलाकर । दीदार - दर्शन । - - नागर जनां मेरी जाति बिखिआत चमारं रिदै राम गोविंद गुन सारं ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ सुरसरी सलल कृत बारूनी रे संत जन करत नहीं पानं । सुरा अपवित्र न ते अवर जल रे सुरसरी मिलत नहि होइ आनं ॥ 1 ॥ तर तारी अपवित्र करि मानीऐ रे जैसे कागरा करत बीचारं । भगति भागउत लिखीऐ तिह ऊपरे पूजीऐ करि नमस्कारं ॥ 2 ॥ 122 / दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास