पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१२०

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मेरी जाति कुटुंब ढांला ढोर ढोवंता नितहि बनारसी आस-पासा । अब बिप्र परधान तिहि करहि डंडउति । तेरे नाम सरणाइ रविदासु दासा ॥ 3 ॥ बिखिआत — विख्यात, प्रसिद्ध । रिदै – हृदय । सुरसरी - गंगा | सलल - सलिल, जल । बारूनी – मदिरा । तरतारी – ताड़ी का वृक्ष (जिसकी छाल कागज बनाने के काम आती है) । कागरा - कागज । भागउत – श्रीमद्भागवत । ढाला ढले, मृत । ढोर – पशु । ढोवंता - ढोते हैं । परधान - प्रमुख डंटउति – दण्डवत्, नमस्कार । सरणइ – शरणागति । - संत तुझी तनु संगति प्रान । सतिगुर गिआन जानै संत देवादेव ॥ 1 ॥ संत ची संगति संत कथा रसु । संत प्रेम माझे दीजै देवादेव ॥ 1 ॥ रहाउ ॥ संत आचरण संत चो मारगू संत च ओल्हग ओल्हगणी ॥ 2 ॥ अउर इक मागउ भगति चितामणि । जणी लखावहु असंत पापीसणि ॥ 3 ॥ रविदास भणै जो जाणै सो जाणु । संत अनन्तहि अंतरु नाही ॥ 4 ॥ - - - देवादेव – देवाधिदेव । संत ची – संत की । माझे- मुझे । संत चो- संत का। ओल्हग ओल्हगणी - जूठ साफ करने वाले । वे केवल संतजनों के सेवक ही नहीं, वरन् उनके सेवकों के भी सेवक (दासानुदास) होने की साध करते हैं। पापीसणि- पापों से सना-भरा हुआ, अत्यन्त पापी । भणै- कहता है। अंतरु- अन्तर, भेद । - - संत रविदास वाणी / 123