पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

किंवदंतियां प्रचलित हो जाती हैं, जिससे उस व्यक्ति का मूलभूत विरोध रहा है। वर्चस्वी वर्ग अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए अपने विरोधी विचारकों के विचारों को भी तोड़-मोड़कर इस तरह प्रस्तुत करता है कि वे उसी वर्ग का हित साधना शुरू कर देते हैं। मध्यकालीन संतों के साथ भी कुछ इसी तरह का हुआ। कबीर हों या रविदास कोई भी इससे नहीं बच पाया।

संत रविदास के बारे में ऐसी जनश्रुतियां हैं कि यदि रविदास को वे सुना दी जातीं तो वे अपना सिर धुन लेते। गौर करने की बात है कि यह सब उनके पक्के अनुयायी, भक्त, श्रद्धालु या सिद्धांतकारों द्वारा प्रचारित-प्रसारित की जाती रही हैं या अनुमोदित की गयीं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि भारतीय समाज मुख्यतः ब्राह्मणवादी विचारधारा से परिचालित रहा है। समाज के हर वर्ग ने इस विचारधारा की नैतिकता व आचार संहिता का ही मूलतः पालन किया है। इसकी समाज पर इतनी पकड़ रही है कि जो भी विचार इसके विपरीत खड़ा हुआ और समाज में बड़ी तेजी से उसे मान्यता मिली वह भी अन्ततः ब्राह्मणवाद का हिस्सा बन गया और इसी विचार को मजबूती प्रदान करने लगा। महात्मा बुद्ध का उदाहरण अधिक महत्त्वपूर्ण है। महात्मा बुद्ध ने ब्राह्मणवाद की चूलें हिला दी थीं। ईश्वर के अस्तित्व तक से इनकार कर दिया था। कर्म को महत्त्व देकर नियतिवाद को मानने से इनकार किया था, लेकिन आखिरकार बुद्ध का दर्शन ब्राह्मणवाद के साथ इस तरह घी - शक्कर हो गया कि वह उसके सबसे अधिक काम आया। कर्म का सिद्धांत पुनर्जन्म और मुक्ति के साथ जुड़ गया और इसने दलित-पीड़ित-वंचितों को कई हजार वर्षों तक गुलाम बनाए रखने का इंतजाम पक्का कर दिया। गौर करने की बात तो यह है कि यह सब इसलिए नहीं हुआ कि बुद्ध के बाद उसके अनुयायियों में कोई उन जितना बुद्धिमान व ज्ञानी नहीं हुआ, बल्कि बहुत अधिक प्रखर समझ वाले लोग हुए, जिन्होंने इस दर्शन में कुछ मौलिक भी जोड़ा । ब्राह्मणवाद ने बुद्ध की गिनती बारह अवतारों में कर दी। इस तरह का सम्मानित स्थान देकर उसके अनुयायियों को अपने घेरे में लिया तो उसके अनुयायियों में बुद्ध के साथ अन्य अवतार भी स्वीकृति पा गए। बुद्ध की विचारधारा वही कार्य करने लगी जिसके खिलाफ वे खड़े हुए थे। समाज के वर्चस्वी वर्गों की यथास्थितिवादी विचारधारा परिवर्तनकामी विचारधाराओं को अपने में इस तरह समाहित कर लेती है कि उनका स्वतंत्र अस्तित्व लगभग मिट ही जाता है ।

ब्राह्मणवाद ने महात्मा बुद्ध के प्रभाव को समाप्त करने के लिए कई ग्रंथों की रचना करवाई थी। रविदास, कबीर आदि के प्रभाव को समाप्त करने के लिए भी कई ग्रंथों की रचना की गई, जिनमें संतों के बारे में कई तरह की कहानियां व

संत रविदास : जीवन परिचय/15