पृष्ठ:दलित मुक्ति की विरासत संत रविदास.pdf/१३

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चमत्कार ढूंस दिए गए और कालान्तर में वही आम लोगों में इन संतों का परिचय करवाने लगे। विशेषतौर पर नाभादास कृत 'भक्तमाल' का जिक्र किया जा सकता है। जो महात्मा बुद्ध के साथ हुआ संत कबीर और रविदास का भी वही हश्र हुआ। ये ब्राह्मणवाद के खिलाफ खड़े हुए थे, ब्राह्मणवादी दर्शन, नैतिकता व अन्य तौर-तरीकों का विरोध किया था, लेकिन कबीर व रविदास के आधिकारिक चेलों ने उन्हें ब्राह्मणवाद में ही दीक्षित कर दिया। इनके बारे में जो किंवदंतियां प्रचलित हैं, उनमें मौजूद ब्राह्मणवादी तत्त्वों से ही इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

रविदास के बारे में तो प्रकारान्तर से यह भी दावा किया गया कि वह पिछले जन्म के ब्राह्मण हैं। शायद इसके पीछे ब्राह्मणवादी शक्तियों की यह भी मान्यता रही हो कि ऐसा ज़हीन व ज्ञानी आखिर दलितों-शूद्रों में कैसे पैदा हो सकता है ? ब्राह्मणवाद ने द्विजों को ज्ञान का जो विशेषाधिकार दिया उसका आधार जन्म ही था जो यह भी साथ ही कहता था कि गैर-द्विजों में कोई ज्ञानी पैदा नहीं हो सकता । इस विचार की समाज में स्वीकृति बनाए रखने के लिए यह जरूरी था कि वे समस्त ज्ञानियों को किसी न किसी प्रकार से द्विज घोषित करते, क्योंकि रविदास व कबीर जैसे 'नीचों' 'मलेच्छों' को भी यदि ज्ञान हो सकता है तो फिर ब्राह्मणवादियों ने जो सिद्धांत इतनी 'मेहनत' करके बनाए उनकी वैधता पर ही प्रश्नचिह्न लग सकता है। इसलिए रविदास को जन्म से ब्राह्मण घोषित करना असल में उसके ज्ञान व महत्त्व का स्वीकार नहीं बल्कि नकार है, क्योंकि जो कुछ रविदास ने संघर्ष के साथ अर्जित किया उसका श्रेय उसके ब्राह्मण होने को दे दिया । यह जनश्रुति इस प्रकार है कि रविदास "पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण ब्रह्मचारी थे और शापवश उन्हें चर्मकार परिवार में जन्म लेना पड़ा था। बालक रविदास ने पूर्व जन्म का ज्ञान होने के कारण अपनी माता का स्तनपान करना पसंद नहीं किया। घर के लोग चिंतित और परेशान हुए तो किंवदंती के अनुसार रामानन्द ने आकर बालक को उपदेश दिया और अपनी माता के स्तन-पान की आज्ञा प्रदान की। तब कहीं बालक ने मां का दूध पीना प्रारंभ किया।" कहानी बिल्कुल अजीब है कि एक ब्राह्मण ने दूसरे ब्राह्मण को शूद्र के घर में पैदा होने का अभिशाप दिया और उसी का नतीजा है रविदास। फिर बात यहीं नहीं रुकी, बल्कि आगे बढ़ाई कि रविदास को पिछले जन्म का ज्ञान याद रहा और उसने बचपन में ही मां का दूध पीने से इनकार कर दिया, गुरु से आज्ञा लेकर ही दूध पिया। इससे यह भी कहा जा रहा है कि रविदास ने अपने मां-बाप को भी उतना महत्त्व नहीं दिया जितना कि 'ब्राह्मण गुरु' को दिया। रविदास ने शूद्र के घर में जन्म तो लिया अभिशाप के कारण, लेकिन

 
16/दलित मुक्ति की विरासत : संत रविदास